"हम बिन पंखों के पंछी "
उड़ते खुले आकाश में
कोई दिशा नही कोई गति नही
हम बिन पंखों के पंछी !
ना वक़्त की आंधी उड़ा सकी,
ना वक़्त की बरखा भीगा सकी ,
जो एक डाल पर बैठ गये
हम बिन पंखों के पंछी .....
ना देखि कोई डगर नई,
ना देखा कोई शहर नया ,
सूखी-हरी लताओं ( परम्पराओं ) में उलझ गये
हम बिन पंखों के पंछी .....
छोटे मोटे कीट पतंगो (बुराइयों ) के संग ,
हमने अपने अहम को पाला ,
भूल गये अब उठना उड़ना ,
हम बिन पंखों के पंछी .....
अपनी झूठी शान के महलों में ,
हम घुट-घुटकर रह जाते हैं ,
भूल गये "पहचान" को अपनी
हम बिन पंखों के पंछी .....
-ANJALI MAAHIL
बिन पंखों के पक्षी ... पर उड़ना बहुत ऊँचा चाहते हैं ... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletegahan ...uttam.
ReplyDeleteबेहद गहन और संवेदनशील अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबिन पंखों की यादें होती हैं जो उडती हैं आसमां में इधर उधर ...
ReplyDeleteमार्मिक रचना है ...
बढ़िया रचना..
ReplyDeleteमैंने इस पर सबसे पहले टिप्पणी की थी ... नहीं दिख रही .. कमेंट्स के स्पैम में देखिएगा
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति।
gahan bhavo se likhi sundar abhivykti....
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया खूबसूरत रचना
ReplyDeleteखूबसूरत रचना...
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअपनी झूठी शान के महलों में ,
ReplyDeleteहम घुट-घुटकर रह जाते हैं ,
भूल गये "पहचान" को अपनी
हम बिन पंखों के पंछी .....
... सुंदर
सुन्दर प्रस्तुति......
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