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Sep 25, 2011

कया तुमने भी देखा है ..!!

" मैंने सपनो में  सपनो को जगते देखा है ...!! "

चंदा  मामा का नाम लिए ,
और होंठों पर मुस्कान लिए ,
मैंने लोगों को सपनो में जागते देखा है !

काली - उजली निखरी रातों में ,
आँखें खोले जज्बातों में ,
मैंने लोगों को सोते देखा है !

झूठी बनावटी नगरी में ,
छलकी (छल की ) सी एक छोटी गगरी में ,
सच की चिताओं को  यकीनन ,
मैंने लोगों पर हँसते  देखा है !

झर- निर्झर बहती आसमान की बूंदों में ,
और तीव्र वेग की धारा में ,
मैंने लोगों को रोते देखा है !

टूटी बिखरी आशाओं में
आजादी की बदली परिभाषाओं में ,
मैंने अपंग से लोगों को ,
पर्वत पर चढ़ते देखा है !

कंकरीली बंजर भूमि पर ,
आड़ी -टेड़ी रेखाओं से ,
मैंने लोगों को सोने में जुतते देखा है !

पुन्य -दायनी गंगा में ,
हाँ ! मोक्ष दायनी गंगे में ,
मैंने लोगों को पाप मिलाते देखा है !

बुख से उपजी नफरत में ,
पेट से उठती ज्वाला में ,
मैंने लोगों को मुल्क जलाते  देखा है !

जो इतिहास में थे सब छुट गये ,
और वर्तमान  में लड़ते हैं ,
मैंने उन लोगों के हाथों से , भविष्य बिगड़ते देखा है !

भ्रष्टाचार के वारों से ,
खिंची हुई तलवारों में
मैंने लोगों को , लोगों में , एक अलख जगाते देखा है !


-ANJALI MAAHIL 

जीवन यात्रा - एक शून्य

18 Sept. 2011


आज  बहुत लंबे वक्त के बाद घर से बाहर निकली हूँ .... महसूस हो रहा है जैसे स्कूल का पहला दिन हो , 
जहाँ ना कोई अपना है, ना ही आँखों में कोई सपना है ...कुछ जानने की तलाश है बस ...
एक झिझक के साथ !


घर से मेट्रो स्टेशन  पहुंची ...कई बार जिस जगह आ जा चुकी हूँ , आज वही मंजिल अनजानी लग रही है , क्यूँ ...? रह रह कर यह मुझे मेरा मेट्रो का पहला सफर लग रहा है !


प्लेटफोर्म पर आकर कुछ वक्त इंतज़ार के बाद , मैंने अपना ये सफर शुरू किया ! इस बीच में लगातार ऋतू से बात करती रही , पता नही क्यूँ डर का सामना करने से बच रही थी ! मेट्रो में सवार होते ही लोगों के नजर मेरी ओर घूमी  और अंदर तक मेरी सांसे सिमटती चली गयी  , अब नेटवर्क जा चुका है , अजीब घबराहट , एक अंजना सा डर  " मैं खो गयी तो ...?"



Central  Secretariat metro पर  जाना  है , एक  बार  फिर  मेट्रो  बदली ,  और सबसे पहले कोच में जाकर बैठ गयी ! महिला आरक्षित कोच ! बेहद चहलपहल ----- हर बार की तरहा , Working Women s.... College Going Girls का  Group  .... तमाम तरह की बातें , बेहद शोर गुल के माहौल में भी मुझे अपनी तन्हाई के कारण कुछ सुनाई ही नही दे  रहा था !! बाहर देखती तो  किसी पुरानी फिरं की तरहा यादें REWIND हो जाती ...
पहले तो  जिंदगी इतनी बोझिल  तो कभी नही थी .... हर बात पर मुस्कुराती हुई " मैं " , अब मुस्कुराना भूल जाती हूँ .!! 


एक बार फिर फोन उठती हूँ , देखती हूँ , कुछ पुराने Messages -------------- वो सवाल ....वो जवाब , आज भी वैसे के वैसे ही हैं ...!!! 




अब जिन्दगी में अपने हालात लिखने  से डर नही लगता , प्रतिक्रियां और मजबूत कर देती हैं ....कमजोर तो पहले भी नही थी ....मगर अब  बस पहला कदम उठाने से डर लगने लगा है , किस  मोड  पर जाने कों छुट जाये !!!

-Anjali Maahil 

Sep 18, 2011

तुमसे जुदा होकर !!

कभी गमो की दलदल में हम भी डूबे थे ,
अब निशां पड़ेंगे , सुखों की सूखी जमीं पर ,
तुमसे जुदा होकर !!

कभी मुद्तों -मुद्तों भीगे आँखों की बारिश में हम भी थे  
अब मुस्कुराहटों का दौर है ,
तुमसे जुदा होकर !!

कभी हम राह से भटके  , तो कभी चलना भी भूले थे,
अब संग चलने लगी हैं मंजिले ,
तुमसे जुदा होकर !!

कभी तेरे पाँव में चाँद , तो कभी तारे भी गिरे थे ,
अब विदा तहां - भिक्षुक  रात हुई ,
तुमसे जुदा होकर !!

कभी शामिल हुए , तो कभी खुद को खो दिया तुझमे ,
अब लेने लगी है " पहचान " एक शक्ल ,
तुमसे जुदा होकर !!

कभी जिंदगी जीते थे , हर तेरी याद में " साहिब! " ,
अब किस्तों में सुकून से कटती हैं ये जिंदगी ,
तुमसे जुदा होकर !!

कभी जंगले पर तेरे, निगाह दिन-ओं- रात रखते थे ,
अब टांग दिया हैं पर्दा,
तुमसे जुदा होकर !!

कल उस युग में जीते थे , कि हासिल कुछ नही आया ,
अब सब सीख लिया हमने,
तुमसे जुदा होकर !!

-ANJALI MAAHIL 

जंगले = खिडकी 

Sep 15, 2011

मेरे दोष .....

जाने कैसे , मेरे सभी दोष दिख जाते हैं उनको .
मेरी एक मुलाकात में ?
जाने कैसे , छुपा लेते हैं अपनी दक्ष प्रतिभा ....
 वो अपनी एक मुस्कान में ?

वही लोग थे वो,
जिन्होंने ....
मेरे तन की लम्बाई से ,
आँखों की गहराई  ,
और ,मेरी आँखों की गहराई से ,
मेरे मन की ऊंचाई मापी |


वही लोग थे वो,
जिन्होंने ..
मेरे लबों की ख़ामोशी से ,
मुझे बेवकूफ समझा ,
और ,मेरी इसी बेवकूफी से ,
मेरे ज्ञान की सीमा मापी |


वही लोग थे वो,
जिन्होंने ..
मेरे गिरते आंसुओं से ,
मुझे कमजोर समझा ,
और मेरी आँखों की कमजोरी से ,
मेरे होंसलो की दूरी मापी |

बहुत खुश हैं वो ये सोच कर -
"अंदाजों के इन्ही आधारों पर टिकी मेरी हस्ती सारी ..."
जाने कैसे .....मेरे सभी दोष दिख जाते हैं उनको ,
मेरी एक मुलाकात में ?


-ANJALI MAAHIL 


Sep 12, 2011

एक प्रयोग ....

संवेदनाएं लुप्त हो गयी  ......!

गारे के
कच्चे मकां पर
गिरती आसमान से
नीरद और अभ्र की बुँदे
घर मेरा गलाती रही
जिस्म मेरा जलाती  रही
देख बाढ़  का ये मंजर 
शहरों में छापने संदेसे अपने अपने 
पतंग की भांति लोग रवाना हो गए 
और मैं  दहशत से स्तब्ध 
शाम की भांति 
बहते घरोंदे देखता रहा 
रात के अंतिम पहर तक 
ऐसे जैसे वेदनाएं विलुप्त  हो गयी 
संवेदनाएं लुप्त हो गयी ...!

किसी राहगीर ने 
बीच रस्ते लथपथ रक्त्तंजित 
कराहती ध्वनि  संग 
जिस्म को गिरे पाया 
नजर चारों और दौड़ गयी यकायक
उसने साँस खींची और तेज कदमो से 
कहीं ओझल हो गया 
अनगिनत क़दमों की चाप सुनती  
धीरे धीरे वो आखिरी बूंद भी निकल 
तेज कदमो से कहीं ओझल हो गयी 
ऐसे जैसे वेदनाएं विलुप्त  हो गयी 
संवेदनाएं लुप्त हो गयी ...!

-ANJALI MAAHIL 

Sep 9, 2011

मेरा शहर, अब लगता नही ...

" आप , मैं और हम सभी ...जानते हैं ....कि परिवर्तन तो होते हैं , और होते रहेंगे ...नियम है नियति  का ..! मगर कुछ बदलाव फिर हमे इतना क्यूँ अखरते हैं...? असहज  की स्तिथि में  क्यूँ  ला देते हैं  हमे....क्यूँ  ...? "


....... जब ,
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ ,
जो अपना तो था ..पर अपना-सा ना लगा ,
अजीब बड़ा माहौल था ,परायों सा ,
कोई खिड़की से झांके , कोई दरवाजे के पास से ,
राम - रहीम का कोई भी ,
लफ्ज कानो में गूंजता ना था ... जब , 
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ !



सभी  को अजीब सी  कमाने  की होड़ थी ,
उस बिखरी  सी शाखों और उधड़ी हुई छाल के ,
बूढ़े से वृक्ष को देखकर ,
याद आ रही थी छन-छन कर आती धुप की ,
और बिखरी हुई गहरी शीतल छांव की .....,
बड़ी बड़ी इमारतों के बीच कोई कोना ,
देर तक मैं खोजता रहा ...... जब ,
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ !




संबोधनो की नगरी में ... वो बचपन का नाम मैं खोजता रहा ,
जो था संग मेरे... मेरे लिए  एक आवरण की भांति  ,
मगर अब वो भी नही अपना लगता .... कहीं नही दिखता  !
जब ....
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ !!


 -Anjali Maahil

Sep 7, 2011

"मुलाकात "



एक छोटी सी मुलाकात हुई ,
कुछ जान हुई ,पहचान हुई ,
कुछ अते -पते की बात हुई ,
फिर कब जाने ,
सुबह की रात हुई ,
ऐसी छोटी -मोटी बात हुई , 
एक छोटी सी मुलाकात हुई !!

थोड़ी -थोड़ी बात बढ़ी ,
ये नजर लगी अलसाई सी ,
कुछ शाम भी थी गहराई सी ,
हाथों पर हाथों की सिहरन से,
बात दबी जुबान पर आयी थी ,
कुछ छोटी -छोटी बात हुईं , 
एक छोटी सी मुलाकात हुई !!

कुछ गिला उसने मुझसे किया ,
कुछ शिकवा मैं भी लेकर आयी थी , 
कुछ छोटी -छोटी बात हुईं ,
एक छोटी सी मुलाकात हुई !!

-ANJALI MAAHIL 

Sep 4, 2011

कलम : मैं

" हम भी बनेंगे कलम "

उतारेंगे अहसासों को , जज्बातों को
हर मोड़ पर , ठहरे हालातों को , 
हम भी जब बनेंगे कलम !!

रखेंगे अपनी सोच सभी ,
पक्ष -विपक्ष और विचारों को ,
फिर बदले नए हालातों को ,
हम भी जब बनेंगे कलम !!

लिखेंगे "लहरें" - समंदर की ,
संग कश्ती और किनारों को ,
टकराकर टूटी चट्टानों को ,
हम भी जब बनेंगे कलम !!

लिखेंगे बसंत की चंचल बहारों को ,
सावन - घटा और शीत दबी आवाजों को ,
मरू के तपते इंसानों को ,
हम भी जब बनेंगे कलम !!

लिखेंगे अपने शब्दकोश नए ,
संग रचनाओ और भाषाओँ को,
देंगे स्वरूप  नया " परिभाषाओं " को
हम भी जब बनेंगे कलम !!



लहरें =विचार , समंदर =आत्मा , कश्ती =राहें , मार्ग , किनारे =मंजिल , चट्टानों =रूढ़ियाँ 
बसंत =ख़ुशी का समय, 
सावन-घटा =दुःख का समय ,
शीत =वो वक्त जब जीवन में शून्य का अधिपत्य हो जाएँ , मरू =मुश्किलें 

-ANJALI MAAHIL 
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