18 Sept. 2011
आज बहुत लंबे वक्त के बाद घर से बाहर निकली हूँ .... महसूस हो रहा है जैसे स्कूल का पहला दिन हो ,
जहाँ ना कोई अपना है, ना ही आँखों में कोई सपना है ...कुछ जानने की तलाश है बस ...
एक झिझक के साथ !
घर से मेट्रो स्टेशन पहुंची ...कई बार जिस जगह आ जा चुकी हूँ , आज वही मंजिल अनजानी लग रही है , क्यूँ ...? रह रह कर यह मुझे मेरा मेट्रो का पहला सफर लग रहा है !
प्लेटफोर्म पर आकर कुछ वक्त इंतज़ार के बाद , मैंने अपना ये सफर शुरू किया ! इस बीच में लगातार ऋतू से बात करती रही , पता नही क्यूँ डर का सामना करने से बच रही थी ! मेट्रो में सवार होते ही लोगों के नजर मेरी ओर घूमी और अंदर तक मेरी सांसे सिमटती चली गयी , अब नेटवर्क जा चुका है , अजीब घबराहट , एक अंजना सा डर " मैं खो गयी तो ...?"
Central Secretariat metro पर जाना है , एक बार फिर मेट्रो बदली , और सबसे पहले कोच में जाकर बैठ गयी ! महिला आरक्षित कोच ! बेहद चहलपहल ----- हर बार की तरहा , Working Women s.... College Going Girls का Group .... तमाम तरह की बातें , बेहद शोर गुल के माहौल में भी मुझे अपनी तन्हाई के कारण कुछ सुनाई ही नही दे रहा था !! बाहर देखती तो किसी पुरानी फिरं की तरहा यादें REWIND हो जाती ...
पहले तो जिंदगी इतनी बोझिल तो कभी नही थी .... हर बात पर मुस्कुराती हुई " मैं " , अब मुस्कुराना भूल जाती हूँ .!!
एक बार फिर फोन उठती हूँ , देखती हूँ , कुछ पुराने Messages -------------- वो सवाल ....वो जवाब , आज भी वैसे के वैसे ही हैं ...!!!
अब जिन्दगी में अपने हालात लिखने से डर नही लगता , प्रतिक्रियां और मजबूत कर देती हैं ....कमजोर तो पहले भी नही थी ....मगर अब बस पहला कदम उठाने से डर लगने लगा है , किस मोड पर जाने कों छुट जाये !!!
-Anjali Maahil
खूबसूरत और भावमयी कथात्मक प्रस्तुति....
ReplyDeleteकुछ यादे है अधूरी सी जो जीवन में जीने नहीं देती ....पर नई शुरुआत भी जरुरी है ...सटीक एक छोटी सी घटना (कहानी )
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति...........
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...बधाई!!
ReplyDeleteअतीत को भुला देना ही अच्छा है जिंदगी में कभी ऐसा मक़ाम भी आ जाता है जब खुद की ही शख्सियत बदलने सी लगती है.........वक़्त का मरहम हर घाव को भर देता है |
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