" आप , मैं और हम सभी ...जानते हैं ....कि परिवर्तन तो होते हैं , और होते रहेंगे ...नियम है नियति का ..! मगर कुछ बदलाव फिर हमे इतना क्यूँ अखरते हैं...? असहज की स्तिथि में क्यूँ ला देते हैं हमे....क्यूँ ...? "
....... जब ,
....... जब ,
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ ,
जो अपना तो था ..पर अपना-सा ना लगा ,
अजीब बड़ा माहौल था ,परायों सा ,
कोई खिड़की से झांके , कोई दरवाजे के पास से ,
राम - रहीम का कोई भी ,
लफ्ज कानो में गूंजता ना था ... जब ,
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ !
सभी को अजीब सी कमाने की होड़ थी ,
उस बिखरी सी शाखों और उधड़ी हुई छाल के ,
बूढ़े से वृक्ष को देखकर ,
बूढ़े से वृक्ष को देखकर ,
याद आ रही थी छन-छन कर आती धुप की ,
और बिखरी हुई गहरी शीतल छांव की .....,
बड़ी बड़ी इमारतों के बीच कोई कोना ,
देर तक मैं खोजता रहा ...... जब ,
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ !
संबोधनो की नगरी में ... वो बचपन का नाम मैं खोजता रहा ,
जब ....
और बिखरी हुई गहरी शीतल छांव की .....,
बड़ी बड़ी इमारतों के बीच कोई कोना ,
देर तक मैं खोजता रहा ...... जब ,
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ !
संबोधनो की नगरी में ... वो बचपन का नाम मैं खोजता रहा ,
जो था संग मेरे... मेरे लिए एक आवरण की भांति ,
मगर अब वो भी नही अपना लगता .... कहीं नही दिखता !जब ....
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ !!
-Anjali Maahil
बहुत ही अच्छी....
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने।
ReplyDeleteसादर
वक्त सब कुछ बदल देता है…………सुन्दर रचना।
ReplyDeleteकोई भी चीज़ सदा के लिए नहीं रहती.........शायद यही शाश्वत नियम है|
ReplyDeleteसमय के साथ सब कुछ बदलता रहता है......
ReplyDeleteयही शाश्वत नियम है|
बदलाव ही जिन्दगी है..बहुत सुन्दर
दो मिनट के शहर में ....
ReplyDeleteकिसको फुर्सत है की वो
कुछ सोचे किसी के लिए
और अगर
कोई सोचता भी है तो
उसे ये जहान
पागल कहता है ....
इस भागते दो मिनट
के शहर में..................anu
बहुत सुन्दर मन से निकली भावनाएं ...खूबसूरती से लिखी हैं ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति............
ReplyDeletejab jo shehar chuut jaate hain ..wo laut kar aaane pe ...badal jaate hain..jaisa chhoda tha waisa nahinn rahta ,kabhi .sundar rachnaa!!
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