गर्त में गिर पड़े ....कह रहे हैं "गर्त से हमे उठाना नही.!"
चल रहे हैं टेढ़े-मेढ़े..."चलना हमे आता नही..!"
यही बिनती अब मेरी उनको -
"तब सीख पहले,.. फिर चलना, उसके बाद तू ...!"
"तब सीख पहले,.. फिर चलना, उसके बाद तू ...!"
थाम हाथ ज्ञान का ..और लक्ष्य को फिर साध तू ,
कर्म कर..कर्म कर.. कर्म कर..
फल की आशा न पहले राख(रख) तू ,
कर बुलंद हौंसले..जो बन सके 'पहचान' तू ,
बोल फिर 'तम' और 'ज्योति' से -
"अब गुर्जर हूँ मैं ..मुखर हूँ ..प्रखर हूँ ..और हूँ सभ्य भी ..!"
"अब गुर्जर हूँ मैं ..मुखर हूँ ..प्रखर हूँ ..और हूँ सभ्य भी ..!"
मैं अब आगाज हूँ ....अब विकास हूँ |
मशाल(गुर्जर) हूँ मैं अब .....तो घर जलाने के काम नही आती
राह हूँ मैं जो अब .....तो भटकाने के भी काम नही आती
मैं अब जो पहरी हूँ .....अपने राज्य का ....
रक्षक हूँ मैं ....जो नही तो भक्षक नही
'प्रेम ही रहा' .....करम और धर्म मेरा
मैं जो खुद के लिए कुछ नही , तो
बस कमजोर की इक आवाज़ हूँ
हूँ तो बस ......
इक जुगनू(माहिल) हूँ मैं ......और वो भी अपने वजूद(गुर्जर) का ......
जो लड़ रहा है ....और कह रहा है अंधकार से-
" कुछ ही हिस्सा सही ...मुझसे रोशन तो है...!"
कहती हूँ बस यही इक बात सम्मान से -
"अब गुर्जर हूँ मैं ..मुखर हूँ ..प्रखर हूँ ..और हूँ सभ्य भी ..!"