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Dec 30, 2010

तनहा हम आज भी ...

ये अधूरी तनहा सी रातें ,
आज भी चुभती हैं दिल मे कहीं |
कसक आज भी उभरती है ,
अधूरी खवाहिशों की दिल मे कहीं |

तनहा हम आज भी हो जाते हैं ,
उनके ख्याल आ जाने पर ,
उम्मीद आज भी रहती है
की-
"शायद परिंदों की तरहा ,
शाम को उसका भी आना होगा "

थम जाते हैं आसूं  आज भी ,
उसकी झूठी बातों की याद से ,
की-
"रोती हो तुम जो ,
तो दर्द मुझको भी होता है |"

खामोश होठों पे भी ,
आज तक नाम उसका पाया मैंने ,
चंद कदम दूर वो तो हाथ छुड़ा  ,
और कह बैठा -
"आखिरी सफ़र तक साथ निभाया मैंने "

चादर भीग जाती है  आज भी ,
सुखी आखों में टूटे सपनो की चुभन से ,
मुस्कुराहट मुरझा जाती है आज भी ,
उसकी बेरुखी भरी बातों की याद से ,


ऐसा अहसास जो वो भी करता ,
ज़िंदगी मे जो कभी,  तो-
शायद हालात और ज़िंदगी भी कुछ और होती ,


ये अधूरी तनहा सी रातें आज भी चुभती हैं दिल मे कहीं.....

Dec 28, 2010

तब चुपके-चुपके......

जब मैं तुमको और तुम मुझको खुद में पा जाते हो ,
तब चुपके-चुपके तुम सपनो में अपने आ जाना |

जब तुम्हारी सर्द सी सांसों से मुझको सर्दी लग जाती हो ,
तब चुपके -चुपके बाँहों की चादर तुम मुझको दे जाना |

जब रात अँधेरी गहराए और मुझको तनहा-सा पाते हो ,
तब थाम के मेरे हाथों को कहीं दूर जहाँ में ले जाना
|
जब सर्द हवाएं कानो में धीरे से शोर मचाती हों ,
तब चुपके-चुपके तुम मुझको बातें सब अपनी कह जाना |


जब पलकों से पलकें टकराएँ और धीरे से वो शर्मायें ,
तब चुपके-चुपके तुम छुकर उनको सोगात सुहानी दे जाना |


जब धीरे-धीरे नींद मुझे बाँहों में अपनी भर ले तो,
तब चुपके-चुपके माथे पर तुम,याद सुहानी दे जाना |


सूरज की मीठी-भीगी सी किरणों से ,

जब सारा जग उठ जाता हो
और फिर तुम भी जग जाते हो
तब प्यार से अपने हाथों की गालों पर थपकी दे जाना
और चुपके-चुपके मुस्काना ......



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