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Followers of Pahchan

Aug 27, 2011

"मेरा आशियाना तो है ..!"

"मेरा है....!" 
ये सोचकर आशियाने के ,
नाजुक  शीशे तोड़ गया कोई ,
नही है मुझे , कोई मलाल
ये सोचकर , कि -
" खंडर ही सही , आज भी , 
मेरा आशियाना तो है ..!"

बेशक ,
अब वो गर्म अहसास ,
इसमें नही होता,
बेरोक - टोक टकराती हैं ,
सर्द हवाएं अब मुझसे ,
सुकून है तो बस उस ,
दीवार के एक सहारे का ,
जो आज भी मजबूत है ,
शायद वो भी मेरी ही तरहा है ,
नही है मुझे , कोई  मलाल ,
ये सोचकर , कि - .................
मेरा आशियाना तो है ..!"



बेशक ,
ये बंद जो है खिडकी ,
जहाँ से धूप आती थी ,
हवा के साथ साथ
बहने वाली बारिश ,
अब मुझको बताती है,
इसका शीशा टूटा सा है ,
सुकून है तो उस ,
चटके-अधूरे से शीशे का ,
जो टूटकर कर भी बिखरा नही ,
शायद  वो भी मेरी ही तरहा है ,
नही है मुझे , कोई  मलाल ,
ये सोचकर , कि - .................
मेरा आशियाना तो है ..!"




बेशक ,
अब इसके पते की "पहचान"
अधूरी  लगती हो तुम्हे ,
भले , अब भूले-भटके से लोगों की ,
जुबान पर इसका नाम आता हो ,
जहाँ इंटों की तरहा ,
बिखरे हों पल मेरे,
सुकून है तो उस ,
अहसास का , जो छुटकर भी बिखरा नही ,
सिमट - कर , छुपा बैठा  है कहीं ,
शायद  वो भी मेरी ही तरहा है ,
इसलिए नही है मुझे , कोई भी मलाल ,
ये सोचकर , कि - .................
" खंडर ही सही , आज भी , 
मेरा आशियाना तो है ..!"


-ANJALI  MAAHIL


Aug 22, 2011

कभी मैं खुद ...



" कभी मेरे शब्द शरारत करते हैं और कभी मैं खुद ......"

बहते हैं जब मेरे अधूरे ख्वाब ,
मेरी आँखों से कतरा - कतरा ,
कभी बिखरकर टूट जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , पोंछ लेती हूँ !

आती है जब जिंदगी में मुश्किलें ,
नदी के तीव्र बहाव की तरहा,
तब उड जाते हैं , बह जाते हैं ,
सहारे मेरे , पुराने बांधो की तरहा ,
कभी दूर बहे निकल जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , छोड़ देती हूँ !

मिलती है जब नयी रौशनी ,
फिर एक नए जन्म की  तरहा ,
तब लगता है पुराना सब ,
सफ़ेद और शांत , नए की तरहा ,
कभी आँखें चौंध जाती हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , मूंद लेती हूँ !


खिलखिलाते हैं शब्द मेरे,
जब कभी बालक की तरहा ,
छिपा होता है दर्द कविताओं में ,
कागज की तरहा ,
कभी शब्द छिटक-कर बिखर जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें ,कागज में बांध देती हूँ !

-Anjali Maahil

Aug 18, 2011

परिचय

मैं ममता ...जिसे आप सभी अंजलि माहिल के नाम से जानते हैं .....
ये नाम मुझे बेहद पसंद है, इसलिए इस नाम से लिखना शुरू किया ,,,,वैसे भी मैं मानती हूँ कि जिंदगी में "इंसान कौन ?  से ज्यादा "इंसान कया है !" मायने रखता है !

जीवन में दो से चार शब्द  कब चार से आठ पंक्तियों की कविता बन गए , पता ही नही  चला !
कभी सोचा भी नही था , कि - लेखन भी कभी मेरे परिचय में शामिल होगा !

स्कूल की कापी - किताबों के पीछे अपनी लिखी हुई  या
किसी और की लिखी कुछ पसंदीदा पंक्तियाँ लिखना ही काम था मेरा |
पहली कविता याद करने  पर  भी याद नही आती | हालाँकि अपनी शुरूआती कविताओं में से एक कविता यहाँ प्रकाशित कर चुकी हूँ- "तुम्ही से हम " नाम से |

स्नातक की शिक्षा के दौरान  मैंने एक कविता और लिखी थी , किसी व्यक्ति विशेष के  लिए -विजय कुमार बिधूड़ी .... जो आज एक प्रशासनिक आधिकारी हैं !  मेरे परिवार साथ ही उनके परिवार को भी बहुत अच्छी लगी थी वो कविता , जल्द ही उसे भी "भेंट" नाम से यहाँ प्रकाशित करुँगी |
लिखना शुरू करने के पीछे बहुत वजह हैं , मगर अच्छा लिखने के लिए दो ही वजह हैं मेरे पास ...
एक मेरे मित्र जो खुद बहुत अच्छा लिखते हैं वो ..,
और दूसरे मेरे वो मित्र जो खुद अच्छा लिखने के साथ साथ मुझे हतोत्साहित करते रहे ......!

जब पहली बार फेसबुक पर अपनी कवितायेँ पेश कि तो काफी प्रशंसा मिली , अच्छा लगा  !
मगर फिर सोचा  , कि कहीं अपनी सभी कविताओं को सहेज कर रख दूँ , डायरी के पन्ने कब तक साथ देंगे .....कभी तो भरेंगे ही ......!

तो मिला सहारा  ब्लॉग का .....यहाँ आई तो कुछ दिनों तक कुछ समझ नही आया , धीरे -धीरे  देख-देख कर हमने भी अपने हाथ खोलने शुरू कर दिए , यहाँ सबसे पहली मुलाकात मेरी जिस ब्लॉग से हुई ...वो था पाठशाला ..... मेरे बेहद करीबी मित्र का ब्लॉग ..... फिर यशवंत माथुर जी का : "जो मेरा मन कहे"...और कारवां बढ़ता गया , कभी सोचा भी  नही था कि मेरी कवितायेँ भी पसंद की  जाएँगी यहाँ  ...... लगता था ज्यादा दिन नही रह पाऊँगी यहाँ  मगर आज ..........65 लोग साथ चल रहे हैं ... साथ दे रहे हैं !


" कभी ना असफल लिखा , ना कामयाब लिखा ,
पन्ना हूँ जो मैं एक किताब का ,
बस , उस पन्ने का एक भाग लिखा ......."

आप सभी के साथ और शुभकामनाओं के लिए .....बहुत बहुत धन्यवाद !

-अंजलि माहिल 

Aug 15, 2011

Indian Soldiers---"TRIBUTE"

15 अगस्त 1947 ....देश की आजादी का दिन..... जिस दिन के लिए जाने कितने भारतवासियों ने अपना जीवन कुर्बान कर दिया ...! और उसके बाद भी क़ुरबानी का ये
सिलसिला थमा नही ...... आज भी सरहदों पर हमारे सैनिक अपने देश की सेवा में अपनी जान देने से पीछे नही हटते...!
आज उन्ही शहीदों को एक छोटी सी श्रधांजलि ...... , और उनके परिवारों को को एक छोटा
 सा ला .......
" भारत हमको जान से प्यारा है..सबसे न्यारा गुलिस्ताँ हमारा है...सदियों से भारत भूमि दुनिया की शान है...भारत माँ की रक्षा में जीवन कुर्बान है ...! "






 मैं सरहद पर जो बैठा हूँ, 
 मजबूरी में ही तो बैठा हूँ , 
 छोड़ के कैसे सब आ जाऊं ?
 बता ....सब छोड़ के कैसे आ जाऊं ?




 हाँ , 
 याद मुझको भी तेरी आती है , 
और धीरे - धीरे आती है ,
जाने क्यूँ , रोने का भी वक़्त नही ?
मैं अब सरहद पर जो बैठा हूँ !


चढ़ता है जब नभ पे सूरज , 
india_lc.gif (42880 bytes)तेरे माथे की बिंदी लगता  है ,
रेत पर बैठी पवन चले तो ,
तेरी पायल लगती है , 
फिर एक गोली चलती है 
और तू गायब हो जाती है ,
एक आह सी दिल में उठती है 
मैं अब सरहद पर जो बैठा हूँ !
छोड़ के कैसे ..........आ जाऊं ?

रात की ठंडी - ठंडी लहरे ,
मुझको सिहरन देती हैं ,
रखकर हाथ में अपने  सर पर ,
जब हँसी को  तेरी सुनता हूँ ,
तब एक आंसू गिरता है ,
और मुझको गीला करता है ,
तब फिर एक गोली चलती है
और तू गायब हो जाती है ,
एक आह सी दिल में उठती है 

मैं अब सरहद पर जो बैठा हूँ !
छोड़ के कैसे ..........आ जाऊं ?



एक रोज लौट के आऊंगा ,
तीन रंग में मैं घिर जाऊंगा ,
सुन,
उस रोज़ तू राहें मत तकना ,
और मुझको गीला(आंसू ) मत करना !


जानु (जानता)  हूँ मैं , मेरे ख़त की राहें
तेरी आखें तकती हैं ......
पर मुझ पर मेरी माँ का ऋण है
सब छोड़ के कैसे आ जाऊं  ?
बता ......सब छोड़ के कैसे आ जाऊं ?

एक वादा करते जाता हूँ .
ख़त आधा छोड़े जाता हूँ ,
एक रोज़ मैं आकर ,
पूरा कर दूंगा !
फिर एक गोली चलती है ,
और सब गायब हो जाता है ,


मैं अब तक सरहद पर जो बैठा था ,
मज़बूरी  में ही तो बैठा था ...!


"आज लौट के घर को आऊंगा .....!"

Pls listen

याद में  उनकी ......एक दीप तो जला ही दो ......  
65वे स्वंतन्त्रता दिवस  की आप सभी को शुभकामनायें ....... 

-अंजलि माहिल 

Aug 11, 2011

friendship : दोस्ती

"जिन्दगी  जो  थी  इन्ही  के  नाम  रह  गयी ..... 
आज  -
एक  से  कदम - भर की दूरी  है  , तो दूसरा  दिल से दूर हो गया ....!!!"



मुझे प्यार जीत से ,
जिंदगी में कभी नही था ,
जब मुक्कदर में आयी ,
एक  हार  की  तरहा ,
तो  दोस्ती कर  बैठे !

जब जीत की आदत लगा बैठे ,
तो वो , हाथ छुडा , दूर जाकर बोली -
"तुझे  ख्वाहिश  जीत  की  कभी ,
जिंदगी  में  नही  थी ,
हार  की  हसरत  थी  तुझे ,
वो  मिल  गयी  ......"

तमाशे का नया ही अंदाज़ था ,
ख़ुशी  आने लगी थी - जाने लगी थी  , 
नए अंदाज़ में जीने लगे थे , मरने लगे थे !

मगर  हार से  पहले  और  जीत के बाद ,
जिंदगी  में नए  रंग भी  बिखरते  देखे ,
नए  लोगों  से मिल खुशी होने लगी ,
बंद  दीवारें  और बंद आसमान के साथ ,
तब बंद मुठी भी खुलने लगी ,
पंख , हसरतों और कामयाबी के मिले 
तो हम उड़ने लगे......
महक , मुरझाये फूलों से आने लगी 
मगर " जाने क्यूँ ? " का  सवाल  आता  रहा 
हैरान करता रहा ....
सोच बनती रही , बिगड़ती रही 
मुझे कुछ खोने का डर जिंदगी में कभी नही था 
मगर पाने की हसरत कर बैठे 
तो कया है ?...." खोने की तड़प "
बात ये तब समझ आयी  !



मुझे प्यार जीत से जिंदगी में कभी नही था ,
जब मुक्कदर में आयी ,
एक हार की तरहा , तो शिकायत कर बैठे!




ये कविता मैंने 
मेरे बेहद करीबी दोस्तों के लिए ......लिखी थी ! 

-ANJALI  MAAHIL



Aug 9, 2011

क्यूँ हैं ये सवाल ?

ये कदम बढ़ता क्यूँ नही ? , रुक क्यूँ जाता है ....बार बार ? , क्या खुद पर भी यकीं नही ?
ऐसे जाने कितने सवाल ?

मगर ,
हम  भूल  जाते  हैं..
हम  सवाल  उस  कदम  पर  कर  रहे हैं ,
जिसके  सामने  अँधेरा  है  ,  और , 
वो  जानता  तक  नही  कि  राहें , 
जाएँगी  ऊपर ,  या  मंजिल  जमीन  की  ओर है ?
उसपर  दुनिया  कहती  है  की -
" डरता है  कदम !"




हम  भूल  जाते हैं..
हम  सवाल  उस  राह  पर  कर  रहे  हैं ,
जिसके  सामने हैं  मंजिले  कई , और , 
वो  जानता  तक  नही ,  कि  ये  मंजिलें ,
सफ़र  का  अंत  है ,  या  वो  अभी ,
नयी  शुरुआत  की  ओर  है ?
उसपर  दुनिया  कहती है  की -
" डरता है  कदम !"



हम  भूल  जाते  हैं..
हम  सवाल उस  मंजिल  पर  कर  रहे  हैं ,
जिसके  सामने  हैं  सवाल  कई , और
वो  जानती  तक  नही  , कि - 
खोना - पाना  है  महज  "पहचान"  उसकी , या , 
मंजिल  फिर  से  नयी  तलाश  की  ओर  है ?
उसपर  दुनिया  कहती  है  की -
" डरता  है   कदम !"


-Anjali Maahil


Aug 4, 2011

प्रिय


सुनो ! तुम दूर हो इतने ,
कभी आइना बन जाओ ,
तुम्हे में देख कर सवंरू ,
मेरा  श्रृंगार बन जाओ !
सुनो तुम दूर हो इतने........

प्रिय ,
तुम्हे जो खत लिखे मैंने ,
लिखकर खुद को सुनाती हूँ ,
ताकती हूँ राहें तुम्हारी ,
और फिर गीत गाती हूँ , 
ढलते पहरों में तुम्हारी ही याद आती है ,
रात में चंद संग तुम्हारी बात होती है , 
मुझे शक है उसे तुमसे जलन होगी , 
यही सोच , मैं कुछ आगे कह नही पाती !
सुनो ! तुम दूर हो इतने ........


प्रिय ,
तुम्हारे आने की जब ,
आहट सी मिलती है , 
तब अपने घरोंदे का ,
मैं  हर कोना सजाती हूँ , 
रह  गया अधूरा कुछ , तुम्हे न रास आएगा ,
बिना शूल का उपवन से , मैं सजाने को फूल लाती हूँ, 
मुझे शक है उन्हें(फूल) तुमसे जलन होगी ,
यही सोच , मैं आगे कुछ कह नही पाती !
सुनो ! तुम दूर हो इतने ......
 



 -Anjali Maahil


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