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Jan 29, 2011

कोई है ..यहाँ ?



उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है |
कई बार मैंने जुगनू सी रौशनी देखी है वहां |

सब कुछ बिखरा है वहां ,
पर बड़े सलीके  से ,
आँगन में उस  पेड़ की माटी ,
आज भी गीली मिलती है वहां |
मसालों के सूखने की महक ,
आज भी मिलती  है वहां |

राख आज भी भरी होती है राहें  में कहीं ,
चाकी के दो पाट खामोश हैं तो,
मगर चलते तो क्या - क्या  कहते??


कि-
"उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है .?"

हवा से खुलते किवाड़ अक्सर बजते हैं 
कुछ कहते हैं |
मैं घंटो निहारती हूँ ऐसे -जैसे ,
खुले  और बंद वो किसी सहारे से हुए |
आज भी पायल की रुन-झुन सुनाई देती है वहां ,
"भरम" कहते हैं इसे लोग मेरा ,ये 
कहकर वो तो कोई झींगुर होगा |
मुझे इक अहसास तब भी होता है ,
कि हो ना हो ...
"उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है | "

कुछ है जो खींचता है उस ओर ,
जो अन- छुआ है वहां ,
उडती हुई धुल मुझे अक्सर ये कहती है -
"उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है | "


BY: Anjali Maahil

Jan 17, 2011

आज लिखना क्या है ?

मैं जब एकांत में बैठकर ,कागज़ और उठती हूँ लेखनी अपनी
तब सोचती हूँ कि किस पर , आज लिखना क्या है ?

लिखूं किस पर ?
बदलते हालात पर ,या बदलते चरित्र पर,
बदलते रिश्तों पर ,या बदलते फरिश्तों पर,
जो बदले थे ,और बदले हैं ,साथ ही बदलेंगे - कभी.
तब इस पर सोचती हूँ ,आज लिखना क्या है ?

बदलते रंग में सब कुछ बदला ,
फिजा नई , अहसास नया ,
जाहिर हो गया सब को सभी कुछ ,
कुछ छुपा रह भी गया तो , छुपा ही सही ,
तब इस पर ,आज लिखना क्या है ?

लिखूं कहाँ ?
उडती पतंग पर , या छुटे से संग पर ,
समुन्दर की तरंग पर , या कटे -छटपटाते अंग  पर ,
सब पता तो है तुम्हे , जो पता नही ?
तब इस पर , आज लिखना क्या है ?

खुशी कहाँ है ?
पानी पे पड़ती धूप में ,या फसल के हर स्वरूप में ,
बच्चो कि किलकारी में , या महंगी किसी सवारी में ,
जो कहीं भी नही इनमे , और अगर है कहीं ,
तब भी, इस पर, आज लिखना क्या है ?


तुम जानते हो झूठ क्या है ?

पत्थर में परम तत्व का होना, या दुनिया में सच्चा खुद का होना,
छुपा के दर्द अक्सर लोगों का, हँसी में लबों से रोना ,
रात का दिन में, और दिन का रात  में होना ,
सब सच है ये जो, और झूठ कुछ भी नही ,
तब सोचकर, इसी पर, आज लिखना क्या है ?


लिखना  है  ?
तो आओ , मुझे बतलाओ , तुम जो शब्द  हो ,
तुम्हे तो सब पता है , ज्ञानी हो ,
मुझे बतलाओ ,तब किस पर, आज लिखना क्या है ?


BY: Anjali Maahil

Jan 12, 2011

इक दरखत पर दस्तखत मेरा भी

 तेरी ज़िंदगी का हर पन्ना हूँ मैं |
तू जब भी उकेरती है शब्द कोई ,
लगता है अनगिनत चीटियाँ मेरे तन पर चल रही हैं |

कभी तुने मुझे इस कदर फेंका ,
कि मैं खुद को उठा भी ना सका ,
मैं  निस्तब्ध रहा , कोने में कहीं ,
स्तब्ध रहा , कोने में कहीं ,
शायद कमजोर था ,
जो पड़ा रहा था ,कोने में कहीं |

जब याद मेरी आयी तो मुझे याद  किया ,
तेरे हर हालात को जीया है  मैंने , तब
जब तुने था मुझे बड़े प्यार से चूमा , तब
जब तुने था मुझे बड़े जोर से जकड़ा , तब
जब रात में और साथ में ,
थी तूने करवट बदली |

कई बार तेरे आसुंओ से भीगा , तो
कई बार गुस्से को भी तेरे है  महसूस किया |
कभी डरा जो तेरी सिहरन से , तो
कई बार तुझे है होंसला भी दिया |

जानता हूँ ये कि ,
दिल तेरा भी दुखता है,  मुझे शयाह करते हुए ,
पर इक फ़र्ज़ तेरा भी है , और मेरा भी है |
कभी जब तूने था मुझे छुआ और फ़ेरी थी उँगलियाँ
धीरे-धीरे,
मुझे भी , दर्द सीने में हुआ था ,
बिछड़े पत्तो की सरसराहट के साथ |
पर सच है आज का  कि-
"तेरी ज़िंदगी का हर पन्ना हूँ मैं"



-{आवाज़ जो है ये इक दरख़्त की ,
मेरी किताबों के थे , जिससे पन्ने बने |
अक्सर ये अकेले में , मुझसे
खुद के जिन्दा होने की बात कहता है | }

BY: Anjali Maahil


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