मैं जब एकांत में बैठकर ,कागज़ और उठती हूँ लेखनी अपनी
तब सोचती हूँ कि किस पर , आज लिखना क्या है ?
लिखूं किस पर ?
बदलते हालात पर ,या बदलते चरित्र पर,
बदलते रिश्तों पर ,या बदलते फरिश्तों पर,
जो बदले थे ,और बदले हैं ,साथ ही बदलेंगे - कभी.
तब इस पर सोचती हूँ ,आज लिखना क्या है ?
बदलते रंग में सब कुछ बदला ,
फिजा नई , अहसास नया ,
जाहिर हो गया सब को सभी कुछ ,
कुछ छुपा रह भी गया तो , छुपा ही सही ,
तब इस पर ,आज लिखना क्या है ?
लिखूं कहाँ ?
उडती पतंग पर , या छुटे से संग पर ,
समुन्दर की तरंग पर , या कटे -छटपटाते अंग पर ,
सब पता तो है तुम्हे , जो पता नही ?
तब इस पर , आज लिखना क्या है ?
खुशी कहाँ है ?
पानी पे पड़ती धूप में ,या फसल के हर स्वरूप में ,
बच्चो कि किलकारी में , या महंगी किसी सवारी में ,
जो कहीं भी नही इनमे , और अगर है कहीं ,
तब भी, इस पर, आज लिखना क्या है ?
तुम जानते हो झूठ क्या है ?
पत्थर में परम तत्व का होना, या दुनिया में सच्चा खुद का होना,
छुपा के दर्द अक्सर लोगों का, हँसी में लबों से रोना ,
रात का दिन में, और दिन का रात में होना ,
सब सच है ये जो, और झूठ कुछ भी नही ,
तब सोचकर, इसी पर, आज लिखना क्या है ?
लिखना है ?
तो आओ , मुझे बतलाओ , तुम जो शब्द हो ,
तुम्हे तो सब पता है , ज्ञानी हो ,
मुझे बतलाओ ,तब किस पर, आज लिखना क्या है ?
BY: Anjali Maahil
तब सोचती हूँ कि किस पर , आज लिखना क्या है ?
लिखूं किस पर ?
बदलते हालात पर ,या बदलते चरित्र पर,
बदलते रिश्तों पर ,या बदलते फरिश्तों पर,
जो बदले थे ,और बदले हैं ,साथ ही बदलेंगे - कभी.
तब इस पर सोचती हूँ ,आज लिखना क्या है ?
बदलते रंग में सब कुछ बदला ,
फिजा नई , अहसास नया ,
जाहिर हो गया सब को सभी कुछ ,
कुछ छुपा रह भी गया तो , छुपा ही सही ,
तब इस पर ,आज लिखना क्या है ?
लिखूं कहाँ ?
उडती पतंग पर , या छुटे से संग पर ,
समुन्दर की तरंग पर , या कटे -छटपटाते अंग पर ,
सब पता तो है तुम्हे , जो पता नही ?
तब इस पर , आज लिखना क्या है ?
खुशी कहाँ है ?
पानी पे पड़ती धूप में ,या फसल के हर स्वरूप में ,
बच्चो कि किलकारी में , या महंगी किसी सवारी में ,
जो कहीं भी नही इनमे , और अगर है कहीं ,
तब भी, इस पर, आज लिखना क्या है ?
तुम जानते हो झूठ क्या है ?
पत्थर में परम तत्व का होना, या दुनिया में सच्चा खुद का होना,
छुपा के दर्द अक्सर लोगों का, हँसी में लबों से रोना ,
रात का दिन में, और दिन का रात में होना ,
सब सच है ये जो, और झूठ कुछ भी नही ,
तब सोचकर, इसी पर, आज लिखना क्या है ?
लिखना है ?
तो आओ , मुझे बतलाओ , तुम जो शब्द हो ,
तुम्हे तो सब पता है , ज्ञानी हो ,
मुझे बतलाओ ,तब किस पर, आज लिखना क्या है ?
BY: Anjali Maahil
अंजली जी, इसी बहाने आपने काफी कुछ लिख डाला। लिखने का यह अंदाज पसंद आया।
ReplyDelete------
ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
नाइट शिफ्ट की कीमत..
सब सच है ये जो, और झूठ कुछ भी नही ,
ReplyDeleteतब सोचकर, इसी पर, आज लिखना क्या है ?
आपकी हर कविता कुछ हट के होती है.और ये भी बेहतरीन है.
सादर
यह प्रश्न तो अक्सर ज़हन में आता ही है और कुछ समझ नहीं आता और फिर बहुत कुछ लिख जाता है....
ReplyDeleteयह प्रश्न तो अक्सर ज़हन में आता ही है और कुछ समझ नहीं आता और फिर बहुत कुछ लिख जाता है....
ReplyDeleteतुम जानते हो झूठ क्या है ?
ReplyDeleteपत्थर में परम तत्व का होना, या दुनिया में सच्चा खुद का होना,
छुपा के दर्द अक्सर लोगों का, हँसी में लबों से रोना ,
रात का दिन में, और दिन का रात में होना ,
सब सच है ये जो, और झूठ कुछ भी नही ,
तब सोचकर, इसी पर, आज लिखना क्या है ?
बहुत गहन अभिव्यक्ति
एक अलग अंदाज .गहन भी. पसंद आया.
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