सर्वाधिकार सुरक्षित : - यहाँ प्रकाशित कवितायेँ और टिप्पणियाँ बिना लेखक की पूर्व अनुमति के कहीं भी प्रकाशित करना पूर्णतया अवैध है.

Followers of Pahchan

Jan 29, 2011

कोई है ..यहाँ ?



उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है |
कई बार मैंने जुगनू सी रौशनी देखी है वहां |

सब कुछ बिखरा है वहां ,
पर बड़े सलीके  से ,
आँगन में उस  पेड़ की माटी ,
आज भी गीली मिलती है वहां |
मसालों के सूखने की महक ,
आज भी मिलती  है वहां |

राख आज भी भरी होती है राहें  में कहीं ,
चाकी के दो पाट खामोश हैं तो,
मगर चलते तो क्या - क्या  कहते??


कि-
"उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है .?"

हवा से खुलते किवाड़ अक्सर बजते हैं 
कुछ कहते हैं |
मैं घंटो निहारती हूँ ऐसे -जैसे ,
खुले  और बंद वो किसी सहारे से हुए |
आज भी पायल की रुन-झुन सुनाई देती है वहां ,
"भरम" कहते हैं इसे लोग मेरा ,ये 
कहकर वो तो कोई झींगुर होगा |
मुझे इक अहसास तब भी होता है ,
कि हो ना हो ...
"उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है | "

कुछ है जो खींचता है उस ओर ,
जो अन- छुआ है वहां ,
उडती हुई धुल मुझे अक्सर ये कहती है -
"उस जर्जर सी ईमारत में, आज भी कोई रहता है | "


BY: Anjali Maahil

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...