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Apr 11, 2011

आरना

दुर्गा अष्टमी की आप सभी को  बधाई !
माँ दुर्ग की आप सभी पर कृपा बनी रहे !!



एक बीते वक़्त से वो मुझे मंदिर में ढूंढ़ते हैं |
मगर पट आज भी बंद , घर के , मेरे लिए |

रोज प्रात: संध्या आरती में "मैं" ही "मैं" गुंजू |
और फिर आशीष को , सर नवाए , सामने मेरे ,
मगर पट आज भी बंद , घर के, मेरे लिए !




रूप मेरा , धन -धान्य  सुख सम्पति में जो मांगे 
वही मेरे अंश पर भी मौन  हैं 
और इसलिए ,
पट आज भी बंद , घर के , मेरे लिए |





वक़्त के साथ आई दुर्गा अष्टमी...
तो थाल में हलवा भी आया और मेवा भी ,
और पाँव मेरे धो- धो के पूजते हैं ,
"माँ साल आगले फिर आना " - कहकर 
और पट आज ही खुले , घर के , मेरे लिए !





सोचो -
क्या मैं आज ही लक्ष्मी हूँ , इनके लिए  ?
क्या मैं आज ही दुर्गा का अंश हूँ ,घर में इनके ?


(GIRLS ARE NOT LIABILITIES, THEY ARE ASSETS....FEMALES ARE NOT EMAILS , D'NT DELETE THEM)





BY: Anjali Maahil

3 comments:

  1. सोचो -
    क्या मैं आज ही लक्ष्मी हूँ,इनके लिए ?
    क्या मैं आज ही दुर्गा का अंश हूँ ,घर में इनके?

    सच में ये पंक्तियाँ मन को बुरी तरह झकझोर देती हैं.
    देवी के रूप में जिस नारी की हम नौ दिन आराधना करते हैं वह नौ महीने अपार कष्ट सह कर हमें जन्म देती है और फिर भी तिरस्कृत होती है.देवी पूजा की सार्थकता तभी है जब हम अपने जीवन में स्त्री के महत्त्व को समझें उन्हें पूरा सम्मान दें.

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  2. wow aap bas likho likho aur likho sachi bahut acha hai

    ReplyDelete
  3. सुंदर रचना।
    गहरे भाव।
    शुभकामनाएं आपको।

    वक्‍त निकालकर यहां भी आईए।

    http://atulshrivastavaa.blogspot.com/

    ReplyDelete

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