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Feb 27, 2011

"मगर याद रह गयी ..."


ये सर्द हवाएं जब मुझे छुकर गुजरती हैं 
तब तब मुझे तेरा गुजर जाना  तेरा याद आता है 
ये सर्द -भीगी सी पूस की रातें 
 सुकून तुम्हे , और मुझे तकलीफ देती हैं 

उस साल जब तुम से हम  मिले 
कहानी नयी थी बुनी ,
गर्म अहसासों की ऊन ,
से गर्म चादर थी  बुनी ,
मगर साल बिता ,
साथ था मौसम बिता ,
मेरे ही अश्कों में,
ये सर्द -भीगी सी पूस की रातें ,
 सुकून तुम्हे, और मुझे तकलीफ देती हैं |


खिड़की से आती धुप में अब भी याद आता है तू ,
हवा से हिलते पर्दों से, धीरे से मुस्काता है तू ,
पास मेरे अब दर्जन भर भी शब्द नही ,
कि तुझको बता सकूँ कितना याद आता है तू ,
ये सर्द -भीगी सी पूस की रातें , 
सुकून तुम्हे, और मुझे तकलीफ देती हैं |


ये सर्द हवाएं जब मुझे छुकर गुजरती हैं 
तब तब मुझे तेरा गुजर जाना  तेरा याद आता है |



BY: Anjali Maahil

Feb 25, 2011

परिचय

हम हर दर्द को आखोँ में छुपा  लेंगे ,
पूछोगे जब हाल-ए-दिल हमारा ,
हंसी में कभी तुम को सुना देंगे |


ये सच है, नही लौट कर आता है ,
गुजरता पल हमदम ,
मगर जब भी पलटोगे पन्ने जिन्दगी के ,
हर किस्सा हम तुमको सुना देंगे |


बहुत वक़्त खुद को जानने में ,
यूँ तो लगाया हमने ,
मगर अब जो पूछोगे परिचय हमारा 
हम खुदी से रु-ब-रु तुमको करा देंगे |


आज वक़्त ने तो हमे तनहा किया,
जिस वक़्त ने ही  कभी मिलवाया था , 
इस बदलते वक़्त में ,
तुम जो पूछोगे कभी मेरे हमसफ़र का नाम ,
  "तुम ही  को"   हम जिन्दगी अपनी बता देंगे |

BY: Anjali Maahil

Feb 20, 2011

कुछ हमसफ़र से थे ,दोस्त वो मेरे ...


जब अकेले में बीती बातें याद आएँगी 
रखना वो कंधे पर हाथ को तेरा, याद फिर आएगा 
तब ख़त तुमको इक मैं भेजूंगा
सुनो-ऐ-दोस्त  मेरा ख़त मिले, तो तुम लौट आना 


घबराओं जब ऊँची-बंद दीवारों में , और
खिड़की दिल की खुल जाती हो 
तब  याद पुरानी तुम्हे मैं भेजूंगा 
सुनो-ऐ-दोस्त  मेरी याद  मिले, तो तुम लौट आना 


धुल भरी किताबों  में , जब  हाथ मेरा पड़ जायेगा 
नाम पुराने देखूंगा,और याद में फिर खो जाऊंगा
तब कुछ नाम तुम्हे मैं  भेजूंगा 
सुनो-ऐ-दोस्त  मेरा नाम मिले ,तो तुम लौट आना 


ढलते सूरज की परछाई में , याद शाम की महफ़िल आएँगी 
सब गीत पुराने गाऊंगा , और तनहा जश्न मानूँगा 
तब तनहा सा जीवन तुमको मैं  भेजूंगा 
सुनो-ऐ-दोस्त  मेरा जीवन मिले ,तो तुम लौट आना 


BY: Anjali Maahil

Feb 6, 2011

काश ...मैं पंछी और मेरी भी एक उडान




सागर की तरह उथले -पुथले 
इन इमारतों के शहर में,
पंछी बनकर मैं , खुद के लिए खुला आसमान मांगू |


जहाँ ऊँची उड़ान हो ,पर बंद कमरों की घुटन नही ,
दिल जहाँ खुश हो , उदास नही ,
पंछी बनकर मैं , खुद के लिए खुला आसमान मांगू |


कोई बदल आये तो मैं भी झट से पार करूँ  ,
बारिश के वार से भी, तब मैं ना डरूं ,
पंछी बनकर मैं , खुद के लिए खुला आसमान मांगू |

ना करें कोई पिंजरे मैं कैद मुझे 
ना कोई दान का दाना भी देन मुझे ,
ऊँची  नज़रों से देख मुझे ,
कोई उड़ने का ना मलाल करें ,
पर इक ये बात जो सच हैं कि-
"उड़ने से पहले हम कई बार गिरे "


ऐ - मालिक मेरे , पंछी बनकर मैं तुझसे ,

खुद के लिए इक खुला आसमान मांगू |






BY: Anjali Maahil



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