सर्वाधिकार सुरक्षित : - यहाँ प्रकाशित कवितायेँ और टिप्पणियाँ बिना लेखक की पूर्व अनुमति के कहीं भी प्रकाशित करना पूर्णतया अवैध है.

Followers of Pahchan

Feb 6, 2011

काश ...मैं पंछी और मेरी भी एक उडान




सागर की तरह उथले -पुथले 
इन इमारतों के शहर में,
पंछी बनकर मैं , खुद के लिए खुला आसमान मांगू |


जहाँ ऊँची उड़ान हो ,पर बंद कमरों की घुटन नही ,
दिल जहाँ खुश हो , उदास नही ,
पंछी बनकर मैं , खुद के लिए खुला आसमान मांगू |


कोई बदल आये तो मैं भी झट से पार करूँ  ,
बारिश के वार से भी, तब मैं ना डरूं ,
पंछी बनकर मैं , खुद के लिए खुला आसमान मांगू |

ना करें कोई पिंजरे मैं कैद मुझे 
ना कोई दान का दाना भी देन मुझे ,
ऊँची  नज़रों से देख मुझे ,
कोई उड़ने का ना मलाल करें ,
पर इक ये बात जो सच हैं कि-
"उड़ने से पहले हम कई बार गिरे "


ऐ - मालिक मेरे , पंछी बनकर मैं तुझसे ,

खुद के लिए इक खुला आसमान मांगू |






BY: Anjali Maahil



No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...