सागर की तरह उथले -पुथले
इन इमारतों के शहर में,
पंछी बनकर मैं , खुद के लिए खुला आसमान मांगू |
जहाँ ऊँची उड़ान हो ,पर बंद कमरों की घुटन नही ,
दिल जहाँ खुश हो , उदास नही ,
पंछी बनकर मैं , खुद के लिए खुला आसमान मांगू |
कोई बदल आये तो मैं भी झट से पार करूँ ,
बारिश के वार से भी, तब मैं ना डरूं ,
पंछी बनकर मैं , खुद के लिए खुला आसमान मांगू |
ना करें कोई पिंजरे मैं कैद मुझे
ना कोई दान का दाना भी देन मुझे ,
ऊँची नज़रों से देख मुझे ,
कोई उड़ने का ना मलाल करें ,
पर इक ये बात जो सच हैं कि-
"उड़ने से पहले हम कई बार गिरे "
ऐ - मालिक मेरे , पंछी बनकर मैं तुझसे ,
खुद के लिए इक खुला आसमान मांगू |
BY: Anjali Maahil
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