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Oct 23, 2011

शिकायत

  
ना बात करते हो , ना लौट आते हो !
सुनो! नाराज हो , क्यूँ खामोश  हो?
शिकायत है तो मुझसे कहो,
मुझे यूँ क्यूँ सताते हो ?

रह रह कर तुम्हारी बीती बातें याद आती हैं ,
वो रूठ जाना और मान भी जाना पलभर में ,
बिठाकर सामने ,मुझे ही ख़त लिखना,
अब जिन्दगी में ,उस ख़त पर लिखे ,
नाम का सहारा ही रह गया है ,
ना बात करते हो , ना लौट आते हो !
बताओ ना ! मुझे यूँ क्यूँ सताते हो ?

क्या कोरे तुम्हारे  कागज सब भर गये ?
भरे हुए वो पन्ने भी हवा संग उड़ गये ?
याद क्या तुम्हे मेरी कभी आती नही ?
तेरी यादों के दीये  सब बुझ गये ?
ना बात करते हो , ना लौट आते हो !
बताओ ना! मुझे यूँ क्यूँ सताते हो ?

रूठकर भी मान जाने का तुम तो वादा करते थे !
सागर से भी गहरे प्यार का तुम जो दावा करते थे !
अब निभाने को तुम से बार - बार मैं आग्रह करती हूँ ...तो तुम
ना बात करते हो ना लौट आते हो ,
बताओ ना ! मुझे यूँ क्यूँ सताते हो ?

मैं अब तुम्हारे  वृक्ष (परिवार) की  
एक सूखी सी डाल बन रह गयी हूँ
सूख कर भी जो चटकी नही  और  फब्ती भी नही ,
ना ही अब मुझ पर कभी यौवन  आएगा...मगर तुम
ना बात करते हो , ना लौट आते हो ,
बताओ ना ! मुझे यूँ क्यूँ सताते हो ?

ये कविता मैंने अपनी "दी" के लिए लिखी है, हालही में मेरे जीजू  की आकस्मिक 
सड़क दुर्घटना में निधन हो गया है ... बस उन्ही के दर्द समेटने की कोशिश की है ... उनके सवाल तो सब सुनते हैं ..मगर जवाब कोई नही देता ...!!!  


(मैं कुछ पारिवारिक वजहों  के कारण काफी दिन से  ब्लॉग से दूर रही थी , इस कारण मैं कुछ लोगों को उनके प्रश्न का जवाब नही दे सकी, उसके लिए माफ़ी मांगती हूँ, कोशिश करुँगी की यहाँ भी लोगों से भी संवाद बनाये रखूं ...)
-ANJALI  माहिल

(चित्र :गूगल के सौजन्य  से)



Oct 12, 2011

ख्वाहिशें पूरी हो नही सकती .....!!


ख्वाहिशें जब जानती हैं ,
पूरी हो नही सकती ,
तो ख्वाहिशें जागती क्यूँ  हैं ?
ये ख्वाहिशें मचलती क्यूँ हैं? 
सो सोकर ,
ये ख्वाहिशें उठती क्यूँ हैं ?
कर जाती हैं तनहा ,
ठंडा सा जिस्म और ,
रख जाती हैं ,
एक अंतहीन तलाश ,
आखों के कोरों में ,
क्यूँ करती हैं मेरे कागजो को स्याह ,
ख्वाहिशें जब जानती हैं , पूरी हो नही सकती ----------


ख्वाहिशें बदलती हैं रंग
श्वेत - श्याम  जिन्दगी के मेरी 
तो ख्वाहिशें नए अधूरे रंग भी
भरती क्यूँ  हैं ?
हकीकत से जुदा करती क्यूँ हैं ?
पुराने अस्पष्ट हैं , बिखरे अस्तित्व के  टुकड़े ,
मेरे दामन  से लिए ,
वो अनजान सफ़र पर चलती क्यूँ हैं ?
क्यूँ करती हैं
अनहुए आश्चर्यों का यकीन ?
ख्वाहिशें जब जानती हैं , पूरी हो नही सकती------------


ख्वाहिशें बसती  हैं आँखों में ,
एक सुन्दर  शक्ल सी लिए ,
बन-बनकर ,
ये ख्वाहिशें ही  उजडती क्यूँ हैं ?
आँखों के कोनो से मद्धम-मद्धम रिसती क्यूँ हैं ?
सब जानती हैं ये, पर्दों में नही कैद ,
आसमां की हलचलें होती ,
तब ये ख्वाहिशें उन में (आँखें ) सिमटती क्यूँ हैं ?
ये अहसास भरती क्यूँ हैं ?
छोड़ जाती हैं , खामोश चेहरे पर ,
बहते हुए हालातों के निशाँ ,
ये ख्वाहिशें जिन्दगी में ,
बे-तहाशा दौडती क्यूँ हैं ?
ख्वाहिशें जब जानती हैं ,पूरी हो नही सकती -----------

"तो ख्वाहिशें जागती क्यूँ  हैं ? "


-ANJALI MAAHIL
परदे= पलक , हलचलें= आंसू

Oct 3, 2011

खामोश क़दमों से

उठते हैं सवाल जहन में कई -
तो दूर , बहुत दूर निकल पड़ती हूँ मैं !
खामोश क़दमों से ,
आँखों में नमी और होंठों पर ,
कुछ अस्फुट शब्द लेकर...!!

मेरी सामने की दीवार पर जो एक  बिंदु है ,
जो खींचता है कई बार अकेले में मुझे ,
जब प्रश्न लेकर उस और देखती हूँ मैं  !
कभी वो मेरे करीब आता हैं ,
कभी समां लेता है दीवार में मुझको !
आकर करीब - चले जाने का ये ,
फासला अब समझने लगी हूँ मैं ! 

अब  ढूंढती  हूँ दीवार पर कई और बिंदु ,
शायद वो भी मेरे अस्तित्व के शून्य से हैं ,
वहीँ कुछ हैं उलझने मेरी , और ज्यादा उलझने को ,
और मुझे उम्मीद समाधानों की अब भी बाकि है !

उठते हैं सवाल जहन में कई -
क्यूँ बड़े वक़्त से सुकून से सोयी नही हूँ मैं ?
क्यूँ बड़े वक़्त से सुकून से रोयी नही हूँ मैं ?
मैं तो कमजोर थी , तो कैसे सब सह लिया मैंने?

उठते हैं सवाल जहन में कई -
क्यूँ तृप्ति की अभिलाषा में ,अतृप्त रहीं हूँ मैं ?
क्यूँ मुक्ति , मुक्त बंधन से मांग रही हूँ मैं ?

उठते हैं सवाल जहन में कई -
क्यूँ अब सपने  अच्छे लगते नही मुझे ?
और  किस के धरातल से , आसमां में , 
मुझे नयी  परवाज भरनी होगी ?

उठते हैं सवाल जहन में कई -
तो दूर , बहुत दूर निकल पड़ती हूँ मैं, खामोश क़दमों से -------------


अस्फुट=अस्पष्ट,  परवाज= उडान,  धरातल=जमीन

-ANJALI MAAHIL 



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