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Oct 29, 2010

वो मुझे भी सोचे...कभी कभी



कभी कोई मेरी भी फ़िक्र करता .. 

बातों ही बातों में मेरा ज़िक्र करता..

मेरी सुबह से उसकी सुबह होती , शाम से उसकी शाम ..

अपनी मुस्कुराती नजरों से अक्सर वो देखा करता ..

कहता मुझे कभी पागल ,तो कभी सताता मुझे 

मेरी मुस्कुराहट के लिए अक्सर वो हँसाता मुझे ..

महफ़िल में होती जब कभी बात मेरी .. 





पलभर के लिए ,सही मुझे महसूस करता ..

बेफिक्र उसके कंधे पर सर रखकर मै सो जाया करती 

मुझे तडपाने के लिए किसी और की बातें करता ...

मै रूठ कर चली जाती , न आने का वादा देकर 

वो उदास भरी नजरों से मुझे रोका करता ...

काश कभी कोई मेरी भी फ़िक्र करता ..

बातों ही बातों में मेरा जिक्र करता.....!


-Anjali Maahil

Oct 27, 2010

मैं जो एक पत्थर ही तो हूँ....?



मैं जो एक पत्थर ही तो हूँ...
लोग मुझे तराशते रहे ......
मैं हर पत्थर की तरह खुदी से दूर होता रहा ..



मैं जो टूट कर भी बदला नही ...

मैं जो बिखर कर भी बिखरा नही ...
पत्थर ही तो रहा ...हर टुकड़े मे मैं ..



वो मुझे शकल देते रहे , चोट करते गए ..

और हर चोट पर मैं ...मुझसे ही खफा होता रहा ..



वो मेरे आसुओं को झरना कहते रहे ..

और मैं उनमे ही गंगा- जल सा पवित्र होता रहा ..



तराशते-तराशते मुझे शकल खुदा सी मिल गयी ..

मुझे अब लोगो ने आदर से छुआ ...
फूलों की बारिश भी की ...
इस दुनियादारी की बातों में ..ना जाने क्यूँ ...कैसे ..?
मैं अपने ही खुदा से दूर होता रहा...



खुले आसमान से अब दीवारों में कैद कर गए वो मुझ को

मैं अब अपनी ही पहचान को खोता रहा 



कभी पैरों के न्हीचे कुचला मुझको

कभी फूलों में खिलाया गया 
कभी हाथों में उछाला मुझको
कभी चंदन- तिलक लगाया गया



इक पत्थर का..नए पत्थर में सर्जन (जन्म) होता रहा ....होता रहा



परिवर्तन ही तो था ....तो ये परिवर्तन होता रहा.....होता रहा ..!





Oct 24, 2010

*...Unspoken Love....*


कितना मजबूर होगा वो दिल उस रात ,
जब उसके फ़रिश्ते ने साथ उसका छोड़ा होगा ..?

कितना तडपा होगा कभी , कभी कितना रोया होगा ..?

कितनी ही बार वो जुड़ कर बिखरा होगा ...?
ना जाने कितनी बार उसे याद फ़रिश्ते की आयी होगी

कितनी ही बार उसे ख़ामोशी मे पुकारा होगा ...
धीरे धीरे सिसकी थमी होगी , और जाने ...

कितनी ही बार खुद को कोसा होगा ..
सोचा होगा क्यों चाहा उसको मैंने टूट कर इतना ....?




इन अधूरे से सवालो का जवाब कैसा रहा होगा

उसे अपनी तकलीफ ,बेचैनी ,तन्हाई 
बताने को कितना तडपा होगा 
इतना मजबूर कोई उस रात ज़माने मे कहाँ होगा ?

कितना मजबूर होगा वो दिल उस रात 
जब उसके फ़रिश्ते ने साथ उसका छोड़ा होगा ......!



Oct 23, 2010

मैं साया हूँ.....


मुझमे  कुछ यूँ  शाखों का  मेला  सा  है .

कुछ पुरानी और कुछ नयी यादों की तरह
 ,
कुछ देर पहले इक, नयी शाख आयी , पास मेरे
मेरे सामने ...मेरे आईने की तरह 
 ,
मैं  जो हँसता हूँ .... तो वो भी हँसती है
मैं जो रोता हूँ .... तो वो भी रोती है


कभी  चुपके से मेरी  ख़ामोशी  को  सुनकर  उदास  होती  है
तो कभी मेरी टूटी डाली को देखकर पूछती है
-" ये कौन  छुट गया......?"

अजीब सा रिश्ता है मेरा... मेरी उस शाख से
जो वो अब  मेरी सब से पुरानी शाख से लिपटी है कहीं ...
जो "कल और आज" नज़र आती है मुझे ,


शायद उसी मे खुद को तलाशता हूँ मैं ...पर जाने क्यूँ 
मुझे हैरानी होती है सुनकर उसकी बातें 

मैं  जो हँसता हूँ तो वो कहती है की उदास क्यूँ नही होते कभी ..?
मैं जो उदास होता हूँ तो कहती है की उदास से क्यूँ रहते हो ..?



मैं ऐसी ही शाखों से मिलकर बना हूँ 

मैं  खुद मे बिना  सहारे के ..मुकम्मल नही
मैं साया हूँ , पर किसी और की छाया मुझे पर पड़ती रही ....!





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