कभी कोई मेरी भी फ़िक्र करता ..
बातों ही बातों में मेरा ज़िक्र करता..
मेरी सुबह से उसकी सुबह होती , शाम से उसकी शाम ..
अपनी मुस्कुराती नजरों से अक्सर वो देखा करता ..
कहता मुझे कभी पागल ,तो कभी सताता मुझे
मेरी मुस्कुराहट के लिए अक्सर वो हँसाता मुझे ..
महफ़िल में होती जब कभी बात मेरी ..

पलभर के लिए ,सही मुझे महसूस करता ..
बेफिक्र उसके कंधे पर सर रखकर मै सो जाया करती
मुझे तडपाने के लिए किसी और की बातें करता ...
मै रूठ कर चली जाती , न आने का वादा देकर
वो उदास भरी नजरों से मुझे रोका करता ...
काश कभी कोई मेरी भी फ़िक्र करता ..
बातों ही बातों में मेरा जिक्र करता.....!
-Anjali Maahil
"kaas, koi meri bhi fikra karta.." ....mind blowing, Anjali ji. aap ki rachana padhkar maja aa gaya..
ReplyDelete"Kabhi koi meri bhi fikra karta.." bahoot achhee, Anjali ji. Keep it Up.
ReplyDeleteवो कहीं न कही तो होगा...एक दिन मिलेगा ज़रूर.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है आपने.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 28 - 07- 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- खामोशी भी कह देती है सारी बातें -
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
मान की एक कोमल सी ख्वाहिश ..सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletevery beautiful
ReplyDeletebahut sundaar ehsaason se sajaya hai aapni is poem ko, loved it :) :)