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Aug 22, 2011

कभी मैं खुद ...



" कभी मेरे शब्द शरारत करते हैं और कभी मैं खुद ......"

बहते हैं जब मेरे अधूरे ख्वाब ,
मेरी आँखों से कतरा - कतरा ,
कभी बिखरकर टूट जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , पोंछ लेती हूँ !

आती है जब जिंदगी में मुश्किलें ,
नदी के तीव्र बहाव की तरहा,
तब उड जाते हैं , बह जाते हैं ,
सहारे मेरे , पुराने बांधो की तरहा ,
कभी दूर बहे निकल जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , छोड़ देती हूँ !

मिलती है जब नयी रौशनी ,
फिर एक नए जन्म की  तरहा ,
तब लगता है पुराना सब ,
सफ़ेद और शांत , नए की तरहा ,
कभी आँखें चौंध जाती हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें , मूंद लेती हूँ !


खिलखिलाते हैं शब्द मेरे,
जब कभी बालक की तरहा ,
छिपा होता है दर्द कविताओं में ,
कागज की तरहा ,
कभी शब्द छिटक-कर बिखर जाते हैं ,
कभी मैं खुद उन्हें ,कागज में बांध देती हूँ !

-Anjali Maahil

13 comments:

  1. कभी शब्द छिटक-कर बिखर जाते हैं ,
    कभी मैं खुद उन्हें ,कागज में बांध देती हूँ !
    sunder abhivyakti......

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  2. खिलखिलाते हैं शब्द मेरे,
    जब कभी बालक की तरहा ,
    छिपा होता है दर्द कविताओं में ,
    कागज की तरहा ,
    कभी शब्द छिटक-कर बिखर जाते हैं ,
    कभी मैं खुद उन्हें ,कागज में बांध देती हूँ !....bahut sundar abhivyakti ,,aabhar ,,,,,

    वो जीवन के डूबता किनारे
    बहे जाते है हम लहरों के सहारे
    कभी हमने खुद से बात की
    तो कभी कोई हमें पुकारे
    बस कागज पर हर दिन उकेरा करते है
    उन खामोश लम्हों की दास्तान जो
    जीने के कुछ मायने हमें सिखा दे ......> B.s.Gurjar

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  3. कभी मैं खुद उन्हें ,कागज में बांध देती हूँ... बहुत ही सुन्दर अभिवयक्ति....

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  4. खिलखिलाते हैं शब्द मेरे,
    जब कभी बालक की तरहा ,
    छिपा होता है दर्द कविताओं में ,
    कागज की तरहा ,
    कभी शब्द छिटक-कर बिखर जाते हैं ,
    कभी मैं खुद उन्हें ,कागज में बांध देती हूँ !
    kagaz me baandhker pahchaan ko badhaiye

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  5. शब्दों को सुन्दर भावनाओं में समेट भी लेती हूँ. अच्छी लगी.

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  6. कभी शब्द छिटक-कर बिखर जाते हैं ,
    कभी मैं खुद उन्हें ,कागज में बांध देती हूँ !...
    कोमल भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  7. Loved blog for its presentation, beautiful..


    " कभी ना असफल लिखा, ना कामयाब लिखा ,
    पन्ना हूँ जो मैं एक किताब का ,
    बस , उस पन्ने का एक भाग लिखा ......."

    वाह. बहुत खूब. Loved it!

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  8. मिलती है जब नयी रौशनी ,
    फिर एक नए जन्म की तरह ,
    तब लगता है पुराना सब ,
    सफ़ेद और शांत , नए की तरह ,
    कभी आँखें चौंध जाती हैं ,
    कभी मैं खुद उन्हें , मूंद लेती हूँ !

    वाह....सुन्दर भावाभिव्यक्ति.....:)

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  9. मिलती है जब नयी रौशनी ,
    फिर एक नए जन्म की तरह ,
    तब लगता है पुराना सब ,
    सफ़ेद और शांत , नए की तरह ,
    कभी आँखें चौंध जाती हैं ,
    कभी मैं खुद उन्हें , मूंद लेती हूँ !

    Bahut hi badhiya likha hai aapne.. Aabhar..

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  10. बहुत अच्छी लगी यह प्रस्तुति..
    आभार

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  11. very nice.......keep it up.

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  12. ''कभी दूर बहे निकल जाते हैं
    कभी मैं खुद उन्हें छोड़ देती हूँ''

    बेहतरीन भावाभिव्‍यक्ति।
    शब्‍दों से आपकी शरारत कमाल की है।
    शुभकामनाएं...............

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