उसकी चोट मेरी ही
खता सी लगती है मुझे |
वो दर्द अपने जब सुनाता है
थामकर हाथ मेरा |
झुक जाती है नज़र मेरी ,
कांप जाता है बदन मेरा |
दिल तो करता है बढ़ कर ,
थम लूँ उसको ,
मगर मजबूर हूँ |
अपने जमीर पर कुछ बोझ लिए बेठी हूँ|
उसे तुमको दिखाऊँ कैसे ?
मेरे ही लफ्ज मेरा साथ ,
छोड़ गये मेरा हमसाया बनकर ,
उसे तुमको दिखाऊँ कैसे ?
बताउं कैसे ?
टूटकर बिखर जाती है हस्ती मेरी ,
जब आसूं उसकी आँख का देखती हूँ ,
ये बात जाताऊँ कैसे?
बताउं कैसे ?
यूँ तो सामना दुनिया का ,
करूँ , होंसला है मुझमे ,
जाने क्यूँ एक उसका ही सामना नही होता |
उसकी आँखों में मैं अपना इंतजार देखती हूँ,
बात उसको बताउं कैसे ?
मज़बूरी अपनी सुनाऊँ कैसे ?
खुद को जलने से रोक पाऊं कैसे ?
उसकी हर चोट मेरी ही ,
खता सी लगती है मुझे |
BY: Anjali Maahil
बहुत अच्छे से आपने भावनाओं को उभारा है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिब्यक्ति | धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है।
ReplyDeleteThank u Yashwnt ji &
ReplyDeleteAAP KA BHI SHUKRIYA PATALI -THE-VILLAGE.
thanks nivedita..
ReplyDeleteसुंदर शब्द रचना ...आपका आभार
ReplyDeletewow sach me ab kya kahu is poem ke bare me
ReplyDeleteअच्छे शब्दों के साथ भावनाओं का सुंदर तरीके से प्रस्तुतिकरण।
ReplyDeleteशुभकामनाएं आपको।
वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
ReplyDeleteवाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
बधाई.
बहुत ही खूबसूरती से आपने भावो को शब्दों में उतारा है..
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