ये कदम बढ़ता क्यूँ नही ? , रुक क्यूँ जाता है ....बार बार ? , क्या खुद पर भी यकीं नही ?
ऐसे जाने कितने सवाल ?
मगर ,
हम भूल जाते हैं..
हम सवाल उस कदम पर कर रहे हैं ,
जिसके सामने अँधेरा है , और ,
वो जानता तक नही कि राहें ,
जाएँगी ऊपर , या मंजिल जमीन की ओर है ?
उसपर दुनिया कहती है की -
" डरता है कदम !"
हम भूल जाते हैं..
हम सवाल उस राह पर कर रहे हैं ,
जिसके सामने हैं मंजिले कई , और ,
वो जानता तक नही , कि ये मंजिलें ,
सफ़र का अंत है , या वो अभी ,
नयी शुरुआत की ओर है ?
उसपर दुनिया कहती है की -
" डरता है कदम !"
हम भूल जाते हैं..
हम सवाल उस मंजिल पर कर रहे हैं ,
जिसके सामने हैं सवाल कई , और
वो जानती तक नही , कि -
खोना - पाना है महज "पहचान" उसकी , या ,
मंजिल फिर से नयी तलाश की ओर है ?
उसपर दुनिया कहती है की -
" डरता है कदम !"
-Anjali Maahil
बहुत अपने लगे सवाल.. हर बार ये सवाल सभी के सामने होते है... बहुत ही अच्छी रचना....
ReplyDeleteबहुत सुंदर .... एक बार हौसला बटोर कर कदम उठायें तो....... सब कुछ मुमकिन है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
मंजिल फिर से नयी तलाश की ओर है ?
ReplyDeleteउसपर दुनिया कहती है की -
" डरता है कदम !"
बेहतरीन प्रस्तुति ।
bhaut hi sundar prstuti....
ReplyDeleteकई बार आपकी पोस्ट लाजवाब कर देती है.........हैट्स ऑफ इसके लिए|
ReplyDeleteसवाल पर सवाल करती बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना। आभार।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई!!!
ReplyDeleteआप सभी कि शुभकामनाओं और प्रतिक्रियाओं के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!!
ReplyDeleteखोना - पाना है महज "पहचान" उसकी , या ,
ReplyDeleteमंजिल फिर से नयी तलाश की ओर है ?
उसपर दुनिया कहती है की -
" डरता है कदम !"
..duniya ka kaam to kahna hai, bas hamen jarurat hoti hai apne badhte kadam pheeche n hatane kee..
bahut badiya abhivykati..
haardik shubhkamnayen!
बढ़िया प्रस्तुति ..... हार्दिक बधाई!!!
ReplyDeleteBehtreen kavita.
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