" हमसाया मेरा ...छोड़मुझे फिर किस से मिलने जाता है ? "
जुदा होकर हमसाया मेरा , वो फिर किस से मिलने जाता है ?
दुनिया की तीखी नजर चुरा , और मीठी मीठी बात बना
धीरे- धीरे अन्धयारे की खाई में ... फिर किस से मिलने जाता है ?
हमसाया मेरा .... छोड़ मुझे फिर किस से मिलने जाता है ?
हमसाया मेरा .... छोड़ मुझे फिर किस से मिलने जाता है ?
एक रोज चुपके छुपके देखा था ..
और सोचती मैं भी रह गयी थी
वो मुझमे , मुझसे ही तो निर्मित है,
फिर छोड़ मुझे वो किस से मिलने जाता है ?
वो उतना तन्हा रहता है ...,
मैं जितना तन्हा रहती हूँ !
वो उतना तन्हा रहता है ...,
मैं जितना तन्हा रहती हूँ !
ना उसका कोई संगी है... ,
ना मैं साथ किसी के रहती हूँ !
फिर छोड़ मुझे वो किस से मिलने जाता है ?
वो हमसाया मेरा बनकर ....किससे मिलने जाता है ?
-अंजलि माहिल
mujhse door hamsaya mera sukoon kaise paayega ...
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteउम्दा !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन है
ReplyDeleteबेहतरीन ...
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteकुछ छुपा हुआ है कविता में...शायद उसके साये के पीछे...
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
ReplyDeleteबहुत खूब. सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है।
ReplyDeletehttp://aapki-pasand.blogspot.com/2012/02/blog-post_03.html
It's deep and meaningful...We always search for meaning within...
ReplyDeleteBeautiful writing...:)