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Dec 28, 2010

तब चुपके-चुपके......

जब मैं तुमको और तुम मुझको खुद में पा जाते हो ,
तब चुपके-चुपके तुम सपनो में अपने आ जाना |

जब तुम्हारी सर्द सी सांसों से मुझको सर्दी लग जाती हो ,
तब चुपके -चुपके बाँहों की चादर तुम मुझको दे जाना |

जब रात अँधेरी गहराए और मुझको तनहा-सा पाते हो ,
तब थाम के मेरे हाथों को कहीं दूर जहाँ में ले जाना
|
जब सर्द हवाएं कानो में धीरे से शोर मचाती हों ,
तब चुपके-चुपके तुम मुझको बातें सब अपनी कह जाना |


जब पलकों से पलकें टकराएँ और धीरे से वो शर्मायें ,
तब चुपके-चुपके तुम छुकर उनको सोगात सुहानी दे जाना |


जब धीरे-धीरे नींद मुझे बाँहों में अपनी भर ले तो,
तब चुपके-चुपके माथे पर तुम,याद सुहानी दे जाना |


सूरज की मीठी-भीगी सी किरणों से ,

जब सारा जग उठ जाता हो
और फिर तुम भी जग जाते हो
तब प्यार से अपने हाथों की गालों पर थपकी दे जाना
और चुपके-चुपके मुस्काना ......



1 comment:

  1. जब पलकों से पलकें टकराएँ और धीरे से वो शर्मायें ,
    तब चुपके-चुपके तुम छुकर उनको सोगात सुहानी दे जाना |

    so beautiful....prestine thoughts....thanx
    :)

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