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Mar 30, 2011

युवा बदलाव की आंधी

 उसे जिन्दगी से  कुछ और भी चाहिए था ,
वो देर तक शाख पर फड-फड़ाता रहा ,
 छटपटाता  रहा ,
वो जो  वृक्ष उसे थपेड़ों से बचा रहा था ,
कभी इधर - कभी उधर  हिला रहा था ,
दुनिया की धूर्त हवाओं ने ,
अब उसे जोर से झटका ,

अब वो आज़ाद था ,
बह रहा था उन्मुक्त  ,
उठाये थी हवाएं उसे जमीन से ,
ऊँचे .ऊँचे  और  ऊँचे , वो उड़ रहा था ,
खुले आसमान में , बिना बंधन के ,
और अचानक ही हवाओं ने अपना रंग ही बदला 
वो शांत हो गयी एकाएक , ठन्डे जल की तरह ,
वो गिरने लगा था , और सोचता रहा था  सवाल क्या 
मेरा क्या कसूर था ? 
"कि मैं उड़ना चाहता था |"
मेरा क्या कसूर था ?
"कि मैं अलग  पहचान चाहता था |"
मेरा  क्या  कसूर था ?
"कि यकीं हवाओं पर मैंने किया |
मजबूर हूँ , जो जुदा अपनी ही शाख से , मर्जी से हुआ |
अब फिर जुड़ नही सकता ,
अब फिर बंध नही सकता | "


BY: Anjali Maahil

3 comments:

  1. बहुत ही गहरे भावों को व्यक्त किया है आपने.

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  2. बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति

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  3. यशवंत जी और कविता जी आप दोनों का शुक्रिया !

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