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Apr 8, 2011

यादों का शहर


अजीब सी खुशबू ,
चारों और फैली है !
ये जो है शहर ,
दिलों के ख्वाबों का शहर है ,
ये  शहर बड़ा अजीब है ,
कब्रिस्तान सा शहर है |
यहाँ  जिन्दा नही कोई !

ये तंगहाली- बदहाली का शहर  है ,
जिन्दगी यहाँ बस्ती है जिनती ,
उतनी उजाड़ भी है |
बसाऊँ कोई ख्वाब मैं ,
तो यहाँ जगह भी कोई कभी
नही मुझे बताता यारों !
ये  शहर बड़ा अजीब है ----------

ये जितना हलचल भरा है ,
उतना वीरान भी है |
चीखती है कई बार यादें ,
और दफ़न भी,
हो जाती है यहाँ |
ये  शहर बड़ा अजीब है ----------

फरमाइश  करती है जब ,
फरेब की हमसे दुनिया |
तो हम यहाँ के बड़े ,
अदाकार लगते हैं |
कलाकार लगते हैं |
मगर यहाँ उस अदाकारी  पर  
तली कभी कोई नही बजता यारों !
ये  शहर बड़ा अजीब है ----------

खो जो जाता है ,
कोई यहाँ अपना ,
तो यहाँ कोहराम मचता है |
तो खामोश दफ़न ,
हो जाते हैं हम  ,
जिन्दा , खंडर में कभी |
तो कोई क्यों -
यहाँ लाश पर कभी 
कोई कफ़न नही चढ़ाता यारों ?


ये  शहर बड़ा अजीब है 

कब्रिस्तान सा शहर है 
यहं जिन्दा नही कोई !



BY: Anjali Maahil



4 comments:

  1. पूरी कविता के साथ ही अंतिम पैरा बहुत ज्यादा प्रभावित करता है.

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  2. thanku yashwant ji ..मुझे भी अंतिम पैरा मुझे भी ज्यादा प्रभावपूर्ण लगा था !

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  3. बहुत सटीक रचना ..सच्चाई कहती हुई

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  4. काफी प्राभावशाली रचना है .सटीक भी.

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