अजीब सी खुशबू ,
चारों और फैली है !
ये जो है शहर ,
दिलों के ख्वाबों का शहर है ,
कब्रिस्तान सा शहर है |
यहाँ जिन्दा नही कोई !
ये तंगहाली- बदहाली का शहर है ,
जिन्दगी यहाँ बस्ती है जिनती ,
उतनी उजाड़ भी है |
बसाऊँ कोई ख्वाब मैं ,
तो यहाँ जगह भी कोई कभी
नही मुझे बताता यारों !
ये शहर बड़ा अजीब है ----------
ये जितना हलचल भरा है ,
उतना वीरान भी है |
चीखती है कई बार यादें ,
और दफ़न भी,
हो जाती है यहाँ |
ये शहर बड़ा अजीब है ----------
फरमाइश करती है जब ,
फरेब की हमसे दुनिया |
तो हम यहाँ के बड़े ,
अदाकार लगते हैं |
कलाकार लगते हैं |
मगर यहाँ उस अदाकारी पर
तली कभी कोई नही बजता यारों !
ये शहर बड़ा अजीब है ----------
खो जो जाता है ,
कोई यहाँ अपना ,
तो यहाँ कोहराम मचता है |
तो खामोश दफ़न ,
हो जाते हैं हम ,
जिन्दा , खंडर में कभी |
तो कोई क्यों -
यहाँ लाश पर कभी
कोई कफ़न नही चढ़ाता यारों ?
ये शहर बड़ा अजीब है
कब्रिस्तान सा शहर है
यहं जिन्दा नही कोई !
BY: Anjali Maahil
पूरी कविता के साथ ही अंतिम पैरा बहुत ज्यादा प्रभावित करता है.
ReplyDeletethanku yashwant ji ..मुझे भी अंतिम पैरा मुझे भी ज्यादा प्रभावपूर्ण लगा था !
ReplyDeleteबहुत सटीक रचना ..सच्चाई कहती हुई
ReplyDeleteकाफी प्राभावशाली रचना है .सटीक भी.
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