मैं कहाँ से अपनी जिन्दगी का ये अधुरा सफ़र पूरा करूँ ?
कभी जहन में नयी- पुरानी यादें आती हैं ,
तो पलकों के मोती भी लौट आते हैं ,
कभी दिल बेचैन , तो जिस्म खामोश लगता है ,
मगर धड़कन से पत्तों के खरकने की आवाज़ आती है |
अब अंत में , मैं कहाँ से ...........
रिश्ते बनावटी से अब दिखने लगे हैं ,
किसी पर विश्वास की चादर भी ,
अब काली और मैली सी प्रतीत होती है |
अब काली और मैली सी प्रतीत होती है |
उम्र का रिश्ता ,
जनम के रिश्ते से भी पास लगता है,
जनम के रिश्ते से भी पास लगता है,
उसमे कुछ शेष है ,
ये भी अटकता है ,फिर ,
ये भी अटकता है ,फिर ,
हर नए मोड़ पर ,
ये रिश्ता भी बदलता है ,
ये रिश्ता भी बदलता है ,
और हर आकृति , अब
श्याह सी प्रतीत होती है |
श्याह सी प्रतीत होती है |
अब अंत में , मैं कहाँ से ..........
कभी जहन में नयी- पुरानी यादें आती हैं ,
तो पलकों के मोती भी लौट आते हैं ,
कभी दिल बेचैन , तो जिस्म खामोश लगता है ,
मगर धड़कन से पत्तों के खरकने की आवाज़ आती है |
अब अंत में , मैं कहाँ से ...........
कभी सवालों के समाधानों की ,
कशमकश में फ़सी रहती हूँ ,
कभी जीवन में सर्वत्र अंधकार लगता है ,
अपनेपन के चेहरों से पटी ये दुनिया ,
हंसती , जीवित ...और कभी अनजान लगती है |
अब अंत में ,
मैं कहाँ से अपनी जिन्दगी का ये अधुरा सफ़र पूरा करूँ ?
अब अंत में ,
मैं कहाँ से अपनी जिन्दगी का ये अधुरा सफ़र पूरा करूँ ?
-Anjali Maahil
कभी जहन में नयी- पुरानी यादें आती हैं ,
ReplyDeleteतो पलकों के मोती भी लौट आते हैं ,
कभी दिल बेचैन , तो जिस्म खामोश लगता है ,
मगर धड़कन से पत्तों के खरकने की आवाज़ आती है |
अब अंत में , मैं कहाँ से ...........
मनःस्थिति को बखूबी उभारा है आपने इस कविता में.
आपकी कविताओं का हर नगीना अच्छा लगता है.
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कल 10/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
mansik chitran sunder prastut kiya hai
ReplyDeleteअभी कहाँ से अंत कि बात कर रही हैं ? ... मन कि कश्मकश को बखूबी लिखा है
ReplyDeletesunder vishleshan kiya hai zindgi ki uha-poh ka.
ReplyDeleteबहुत बहुत खूबसूरती से मन के भावो को शब्दों में पिरोया है अपने...
ReplyDeleteकभी जहन में नयी- पुरानी यादें आती हैं ,
ReplyDeleteतो पलकों के मोती भी लौट आते हैं ,
कभी दिल बेचैन , तो जिस्म खामोश लगता है ,
मगर धड़कन से पत्तों के खरकने की आवाज़ आती है |
अब अंत में , मैं कहाँ से ...........patton se sarsaraate ehsaas
अच्छी प्रस्तुति ...कल इस पर शायद टिप्पणी तो दी थी ..दिख नहीं रही :)
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11-7-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
इंसानी मन के भीतर की उठापठक को चित्रित करती बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteशुभकामनाएं आपको..............
bahut sundar
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत अहसासों को समेटे ये पोस्ट ....पसंद आई|
ReplyDeleteएक नए तरीके की कविता। बेहद खुबसुरत। शानदार।
ReplyDeletesundar prastuti@
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता..
ReplyDeleteआप सभी कि शुभकामनाओं और प्रतिक्रियाओं के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!!
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