"लगा चाक पर पड़ी माटी जैसे हम अब हो गये ..."
कुम्हार का गोल पहिया
घूमता रहा , घुमाता रहा
वो तो समय चक्र था ,
खुद चलता रहा , हमे भी चलाता रहा !!
मैं जो कल में भी था ,
और कल के आने वाले
वक्त में भी व्याप्त हूँ ,
फिर डरना मुझसे कैसा ??
बात कहकर ,
आगे बढ़ता रहा ...हमे भी बढाता रहा ,
चलता रहा ....चलाता रहा !!
मिटटी गिरी , शक्ल चुनी ,
एक छन में सभी कुछ ,
परिवर्तित हो गया ,
नियम नियति का कहकर ,
खुद को वो बदलता रहा ,
चलता रहा .... हमे भी चलाता रहा !!
कच्ची मिटटी की गीली शक्ल को ,
अधुरा छोड़ , पकाने को दुनिया की ,
तीखी तलख टिप्पणियों से ,
आगे उसे सरकाता रहा ...
कुछ सीखता रहा ....और हमे भी सिखाता रहा,
खुद को बहलाता रहा .... हमे उलझता रहा !
खुद चलता रहा ....हमे भी चलाता रहा !!
-ANJALI MAAHIL
कच्ची मिटटी की गीली शक्ल को ,
ReplyDeleteअधुरा छोड़ , पकाने को दुनिया की ,
तीखी तलख टिप्पणियों से ,
आगे उसे सरकाता रहा ...
कुछ सीखता रहा ....और हमे भी सिखाता रहा,
खुद को बहलाता रहा .... हमे उलझता रहा !....
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...
आपकी पोस्ट की चर्चा कृपया यहाँ पढे नई पुरानी हलचल मेरा प्रथम प्रयास
ReplyDeletejiwan chakr ke sath mitti ke chak ki vilakshan tulna badhiya upma alankar ka prayog behad prashansneey hai.
ReplyDeleteकच्ची मिटटी की गीली शक्ल को ,
ReplyDeleteअधुरा छोड़ , पकाने को दुनिया की ,
तीखी तलख टिप्पणियों से ,
आगे उसे सरकाता रहा ...
कुछ सीखता रहा ....और हमे भी सिखाता रहा,
खुद को बहलाता रहा .... हमे उलझता रहा !
बहुत अच्छा लिखा है आपने।
सादर
कच्ची मिटटी की गीली शक्ल को ,
ReplyDeleteअधुरा छोड़ , पकाने को दुनिया की ,
तीखी तलख टिप्पणियों से ,
आगे उसे सरकाता रहा ...
कुछ सीखता रहा ....और हमे भी सिखाता रहा,
खुद को बहलाता रहा .... हमे उलझता रहा !
.... गहन चिंतन की अभिव्यक्ति सुन्दर शब्दों में..बहुत सुन्दर
वक्त के साथ दुनियादारी सीख ही जाते हैं ... वक्त का पहिया बहुत कुछ सिखाता है
ReplyDeleteमिट्टी के बिम्ब लिए एक सारगर्भित पोस्ट बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeletebahut sunder bhav...........
ReplyDeleteवाह !अंजलि जी,
ReplyDeleteइस कविता का तो जवाब नहीं !
विचारों के इतनी गहन अनुभूतियों को सटीक शब्द देना सबके बस की बात नहीं है !
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeletesunder bhaav abhivaykti...
ReplyDeletesunder bhaav abhivaykti...
ReplyDeleteइन आसान से लफ्जों में आपने जीवन केगूढ रहस्य को उकेर सा दिया है। बधाई।
ReplyDelete.......
प्रेम एक दलदल है..
’चोंच में आकाश’ समा लेने की जिद।
इस पोस्ट के लिए आपको सलाम..........आपकी बातों में जो आध्यात्मिकता की झलक है वो मुझे बहुत पसंद आई......कुछ अलग, कुछ अच्छा पढ़ने को मिलता है आपके ब्लॉग पर.........ऐसे ही लिखती रहें........शुभकामनायें|
ReplyDeleteजिंदगी है खुद तो चलती है हमे भी चलना सिखाती है इसकी रफ़्तार कोई कैसे रोक सकता है और इसका चलना ही अच्छा है |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना |
गहन चिंतन करती बहुत खुबसूरत रचना...
ReplyDeleteसादर...
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
bahut khoob Anjli ji .badhai
ReplyDelete"लगा चाक पर पड़ी माटी जैसे हम अब हो गये ...
ReplyDeleteपहली ही लाईन में सिरा बता दिया कि आगे क्या होना वाला है.. बहुत अच्छा लिखा है.. और साथ ही ब्लॉग के टेम्पलेट का चुनाव भी अच्छा लगा..
आप सभी कि शुभकामनाओं और प्रतिक्रियाओं के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!!
ReplyDelete