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Jan 19, 2012

हमसफ़र

वो जो मासूम है ज्यादा मुझसे ,
वो जो हमसफ़र है मेरा ,
" कोई बंधन नही , फिर  हमसफ़र  क्यूँ हूँ ? "
अक्सर पूछता है इस बात को कुछ यूँ कह कर-
" तेरा कौन हूँ मैं ? "


माना तेरे जिन्दगी का दीया हूँ मैं ,
जो जलकर -बुझकर भी , उम्र-भर रौशनी दे नहीं दे सकता ।
माना खुशबू कि तरहा महकता भी हूँ ,
बिखरकर तुझमे  जो उम्र-भर संग रह नही सकता।
अक्सर पूछता है ......." तेरा कौन हूँ मैं ? "


माना तेरे सहारे कि दीवार हूँ मैं ,
जो दरार के उस पार भी अधूरी हैं और उस पार भी ।
माना तेरी कहानी का नायक हूँ मैं ,
जो अस्तित्व में तो है परन्तु एक शून्य कि भांति ।
अक्सर पूछता है ......." तेरा कौन हूँ मैं ? "


माना तेरे अंतर्मन से उठते हुए सवालों का जवाब हूँ मैं ,
जो स्वयम सफल-असफल समाधानों के दवंद में उलझा है,
माना तेरी जिन्दगी के सफ़र का दिशा-सूचक हूँ मैं ,
जो थमी पवन में खुद भी निर्णय ले नहीं पाता ।
अक्सर पूछता है ....... " तेरा कौन हूँ मैं ? "

-ANJALI MAAHIL 

16 comments:

  1. सटीक और सार्थक अभिव्यकित, बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर। सादर।

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  2. बहुत ही खुबसूरत
    और कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  3. कोमल भावों से सजी सुंदर अभिव्यक्ति ....

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  4. गहरे भाव।
    खूबसूरत अभिव्‍यक्ति।

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति है!!
    अच्छा लगा आपके ब्लौग पर आना.

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  6. खूबसूरत भाव सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  7. बेहद ही सुन्दर...भाव पूर्ण श्रेष्ठ रचना...शुभ कामनायें !!!

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  8. सुन्दर....अच्छी भावाव्यक्ति..

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  9. सब कुछ होते हुए भी पूछता है की मैं कौन हूँ तेरा ... सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  10. बहुत ही बढ़िया।


    सादर

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  11. सुन्दर काव्य प्रस्तुति

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  12. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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