मुझमे कुछ यूँ शाखों का मेला सा है .
कुछ पुरानी और कुछ नयी यादों की तरह
,
,
कुछ देर पहले इक, नयी शाख आयी , पास मेरे
मेरे सामने ...मेरे आईने की तरह
,
,
मैं जो हँसता हूँ .... तो वो भी हँसती है
मैं जो रोता हूँ .... तो वो भी रोती है
कभी चुपके से मेरी ख़ामोशी को सुनकर उदास होती है
तो कभी मेरी टूटी डाली को देखकर पूछती है
-" ये कौन छुट गया......?"
अजीब सा रिश्ता है मेरा... मेरी उस शाख से
जो वो अब मेरी सब से पुरानी शाख से लिपटी है कहीं ...
जो "कल और आज" नज़र आती है मुझे ,
शायद उसी मे खुद को तलाशता हूँ मैं ...पर जाने क्यूँ
मुझे हैरानी होती है सुनकर उसकी बातें
मैं जो हँसता हूँ तो वो कहती है की उदास क्यूँ नही होते कभी ..?
मैं जो उदास होता हूँ तो कहती है की उदास से क्यूँ रहते हो ..?
मैं ऐसी ही शाखों से मिलकर बना हूँ
मैं खुद मे बिना सहारे के ..मुकम्मल नही
मैं साया हूँ , पर किसी और की छाया मुझे पर पड़ती रही ....!
सचमुच ही एक सच्ची और सार्थक शुरूआत... आपकी कोशिश एक मिसाल न बनकर एक मशाल बने जो अन्यो को भी इस प्रकार की रोशनी प्रदान करे. ब्लॉग्गिंग की दुनिया मे अंजलि आपका स्वागत है. आपको तहे दिल से शुभकामनायें और मुबारकबाद.
ReplyDeletethnx bhaiya....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना...
ReplyDeleteमैं खुद मे बिना सहारे के ..मुकम्मल नही
ReplyDeleteमैं साया हूँ , पर किसी और की छाया मुझे पर पड़ती रही ....!
सुन्दर रचना..
मेरे ब्लॉग में पधारें.
http://www.pradip13m.blogspot.com/
मैं साया हूँ........उफ्फ....
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