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Mar 1, 2011

वो कच्ची सड़क


वो कच्ची सड़क आज भी याद आती है ,
जहाँ गिर भी जाऊं  तो चोट नही लगती |
जहाँ भी पैर रखती थी वहां ये मिल ही जाती थी ,
पाना मुश्किल नही था ,
पर जाने क्यूँ अब नामुनकिन हो गया |

ये मेरी बचपन की कच्ची सी सड़क ,
 बारिश मे टिक नही पाती थी ,
एक नए सिरे से शुरुआत करती थी मैं ,
रोज़ रोज़ इसी पर जब चलती थी मैं |

वो  मेरे  बचपन  की  भांति कोमल थी ,
वो एक ही  आकार में कैद न रहती, चंचल सी थी ,
कभी बाएं तो  कभी दायें ,अटखेलियाँ करती ,
शहरों की अक्सर बातें करती थी मैं, 
रोज़ रोज़ उसी  पर जब चलती थी मैं |









BY: Anjali Maahil

2 comments:

  1. सच कहूँ...इस कच्ची सड़क को हम आज भी महसूस करते हैं ...अपने मन में .
    शुरुआत ही उस सड़क से होती है जिसकी लम्बाई उम्र के बढ़ने और जीवन के घटने के साथ साथ बढती ही जाती है...न जाने कितनी पग डंडियों पर हम चल चुके होते हैं...वक़्त है कि कुछ एहसास होने नहीं देता.

    मेरे मन को छू गयी आपकी यह कविता.

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  2. apne shi kaha ki waqt ahsas nhi hone deta
    thank u yashwant ji

    ReplyDelete

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