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Mar 12, 2011

जिन्दा हूँ मैं |


"सुनो, मेरी आवाज़ , मैं भी हूँ ......और जिन्दा हूँ | "



बंद कमरा .और छटपटाता धुप अँधेरा 
दीवारों से टकराता हुआ 
बेबस है बहुत ,चीखता भी है 
"सुनो, मेरी आवाज़ , मैं भी हूँ ,
और जिन्दा हूँ |
तुम भी अजीब हो !
तुम जो मुझसे डरते हो ,
और डरा जो मैं पहले से हूँ |

डरा हूँ इन्सान की टूटी हुई उमीदों से ,
डरा हूँ इन्सान की अन्दर की ख़ामोशी से ,
डरा हूँ उसकी खुल कर फिर बंद होती पलकों से ,
जो अक्सर मुझे से कहती हैं -

"अँधेरे में डर लगता है | "
वो जानते ही नही .. या मानते ही नही 
मैं जीवन का अहम् हिस्सा भी हूँ ,
हर कहानी में किस्सा  भी हूँ , 
वो मैं ही था जिसने महसूस किया ,
पहली बार आशा की  रौशनी को ,
किसी की ख़ामोशी को ,
फिर कोई बेचैन है ये सोच कर ,
मैं जाने क्यूँ और भी  गहरा हो गया ?

"सुनो, मेरी आवाज़ , मैं भी हूँ |
और जिन्दा हूँ | "

 -Anjali Maahil


4 comments:

  1. दिल को छू लेने वाली कविता.

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  2. भावनात्मक प्रस्तुति

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  3. बहुत भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर

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  4. मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया ...

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