वो बुझी हुई आखें कहती हैं
"मैं थकता नही हूँ जीवन भर |"
आश्चर्य से एकटक मैं देखती हूँ ,
और शब्द गूंजते से प्रतीत होते हैं मुझे |
रुक नही सकता , थककर थम नही सकता ,
शून्य हो जाऊंगा , चेतना विलुप्त हो जाएगी ,
कहता है कर्म मेरा , आगे बढ़ मुझसे ,
यही वजह है कि -
" मैं थकता नही हूँ जीवन भर |"
वो कहता है :
राहों से "पहचान" मेरी इतनी हुई
की खौफ ना मंजिल से भटकने का रहा
समय से हर बार उलझे
और साँस से साँस जुड़कर ,
फिर एक बार टूटी |
फिर एक बार टूटी |
यही वजह है कि -
" मैं थकता नही हूँ जीवन भर |"
वर्षा से धुल नही सकता
ग्रीष्म में जल नही सकता
सर्दी नही हाड, कपाती कभी भी मेरे
ये जो भी दिन हैं , परिश्रम के हैं
यही वजह है कि -
" मैं थकता नही हूँ जीवन भर |"
मेरा जीवन परोपकार का है
मेरा जीवन संघर्ष का है
फिर भले ही कांधा दर्द से चूर हो
नींद आखों में भरपूर हो
छाले बेडी से पाँव में पड़ जाते हो
"मगर मैं थक नही सकता
चेतना शून्य हो जाएगी |"
BY: Anjali Maahil
एक श्रमिक की यही खासियत है कि वो कभी थकता नहीं है. वक्त के थपेडों का कुछ असर उसके शरीर पर ज़रूर दिखाई दे जाता है पर उसके जितना मानसिक संबल और ऊर्जा शायद ही किसी के पास हो.
ReplyDeleteकविता वाकई दिल को छू लेने वाली है.
बहुत प्रेरक सुन्दर रचना...
ReplyDeleteश्रम की महत्ता बताती एक अच्छी कविता .....
ReplyDeleteमैं थकता नहीं हूँ ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेरक रचना ..
....गहरी संवेदना से उपजी मजदूर की मनोदशा का आपने बखूबी चित्रण किया है .... एक मजदूर का थकना सबको दिख जाय तो फिर रोना ही किस बात का!
सुन्दर सार्थक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा.... मेरी .हार्दिक शुभकामनायें ... निरंतर लिखती रहिएगा....
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद .....
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