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Jul 18, 2011

कविता एक रात की


कितनी खामोश चांदनी हैं रात की ,
वो  जानती हैं , कोई ,
सवाल इससे कहीं कर रहा होगा ,
वो जो बैठा  होगा , नजरो को उठाये  हुए ,
तूफ़ान दिल में समाये हुए |
कितनी खामोश चांदनी हैं .......

कहीं सवाल होगा किसी किस्से कहानी का ,
कोई ढूंढ़ता उसमे , अपना अक्स भी होगा ,
सोचकर ,  मैं अंत हूँ या अंत में मैं हूँ ,

कहीं सवाल होगा , छोटी हथेली का ,
जो छू रहा होगा , खुले आसमान को अपने ,
सोचकर  , छोटी हथेली हैं , या आकाश बड़ा हैं ?

कहीं सवाल होगा  , बूढ़े  से हाथों का ,
जो छू रहा होगा ,  झुरियों में लकीरों को अपनी ,
सोचकर  , कमजोर आँखें हैं , या लकीरें बढ़ गयी ?

कहीं सवाल होगा , महोब्बत के फसानो का ,
कोई रूककर फिर , मनुहार को तैयार बैठा हैं ,
सोचकर  , ख़ुशी रूठने में हैं ,या मान जाने में ?

कहीं सवाल होगा , कविता के  अधूरे छंद का ,
कोई तेरा कागज लिए कोरा   , बेहिसाब लिखता हैं ,
सोचकर , शब्दों में अहसास कैसे उभरते हैं , या ,
बिखर जाते हैं बस यूँ ही ?

सब रह गए असफल , जवाब की तलाश में ,
सब जानते हैं , क्यों ,
इतनी खामोश चांदनी हैं रात की .....


-अंजलि माहिल 

19 comments:

  1. कहीं सवाल होगा किसी किस्से कहानी का ,
    कोई ढूंढ़ता उसमे , अपना अक्स भी होगा ,
    सोचकर , मैं अंत हूँ या अंत में मैं हूँ ,

    गहन विचार ..अच्छी प्रस्तुति

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  2. बहुत खूबसूरती से रात की ख़ामोशी को वयक्त किया है आपने..

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  3. अंजलि माहिल जी
    नमस्कार !
    वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, बहुत सुन्दर जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत.......
    ......श्रावण मास की हार्दिक शुभकामनायें !
    जय भोलेनाथ

    ReplyDelete
  4. कहीं सवाल होगा , कविता के अधूरे छंद का ,
    कोई तेरा कागज लिए कोरा , बेहिसाब लिखता हैं ,
    सोचकर , शब्दों में अहसास कैसे उभरते हैं , या ,
    बिखर जाते हैं बस यूँ ही ?

    बहुत खूब अंजलि जी.

    सादर

    ReplyDelete
  5. कल 19/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. सुन्दर भावाव्यक्ति।

    ReplyDelete
  7. इतनी खामोश चांदनी हैं रात की ..कितनी खामोशी से दिल को छूती हुई रचना..बहुत सुन्दर..बधाई...

    ReplyDelete
  8. बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ...

    आज आपकी एक प्रस्‍तुति यहां पर भी ...

    http://www.parikalpna.com/?p=5283

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  9. sabki apni apni soch apne apne khayaalat hote hain.

    sabhi socho ko sunder shabd diye.

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  10. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। आभार।

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  11. हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए आपको...........बहुत शानदार .....दिल को छू लेने वाली|

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  12. सब रह गए असफल , जवाब की तलाश में ,
    सब जानते हैं , क्यों ,
    इतनी खामोश चांदनी हैं रात की .....
    .
    .
    .
    सब नहीं जानते चांदनी रात की ख़ामोशी का क्या राज़ है???

    कुछ यू है कि दिल के अंदर के धुधलके की आवाज़ है!!!

    ReplyDelete
  13. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  14. बहुत खूबसूरती से रात की ख़ामोशी को वयक्त किया है आपने..
    श्रावण मास की हार्दिक शुभकामनायें !

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  15. कहीं सवाल होगा , बूढ़े से हाथों का ,
    जो छू रहा होगा , झुरियों में लकीरों को अपनी ,
    सोचकर , कमजोर आँखें हैं , या लकीरें बढ़ गयी ?

    बहुत सुंदर...

    ReplyDelete
  16. आप सभी कि शुभकामनाओं और प्रतिक्रियाओं के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!!

    ReplyDelete
  17. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, आज 26 अक्तूबर 2015 को में शामिल किया गया है।
    http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !

    ReplyDelete

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