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Oct 12, 2011

ख्वाहिशें पूरी हो नही सकती .....!!


ख्वाहिशें जब जानती हैं ,
पूरी हो नही सकती ,
तो ख्वाहिशें जागती क्यूँ  हैं ?
ये ख्वाहिशें मचलती क्यूँ हैं? 
सो सोकर ,
ये ख्वाहिशें उठती क्यूँ हैं ?
कर जाती हैं तनहा ,
ठंडा सा जिस्म और ,
रख जाती हैं ,
एक अंतहीन तलाश ,
आखों के कोरों में ,
क्यूँ करती हैं मेरे कागजो को स्याह ,
ख्वाहिशें जब जानती हैं , पूरी हो नही सकती ----------


ख्वाहिशें बदलती हैं रंग
श्वेत - श्याम  जिन्दगी के मेरी 
तो ख्वाहिशें नए अधूरे रंग भी
भरती क्यूँ  हैं ?
हकीकत से जुदा करती क्यूँ हैं ?
पुराने अस्पष्ट हैं , बिखरे अस्तित्व के  टुकड़े ,
मेरे दामन  से लिए ,
वो अनजान सफ़र पर चलती क्यूँ हैं ?
क्यूँ करती हैं
अनहुए आश्चर्यों का यकीन ?
ख्वाहिशें जब जानती हैं , पूरी हो नही सकती------------


ख्वाहिशें बसती  हैं आँखों में ,
एक सुन्दर  शक्ल सी लिए ,
बन-बनकर ,
ये ख्वाहिशें ही  उजडती क्यूँ हैं ?
आँखों के कोनो से मद्धम-मद्धम रिसती क्यूँ हैं ?
सब जानती हैं ये, पर्दों में नही कैद ,
आसमां की हलचलें होती ,
तब ये ख्वाहिशें उन में (आँखें ) सिमटती क्यूँ हैं ?
ये अहसास भरती क्यूँ हैं ?
छोड़ जाती हैं , खामोश चेहरे पर ,
बहते हुए हालातों के निशाँ ,
ये ख्वाहिशें जिन्दगी में ,
बे-तहाशा दौडती क्यूँ हैं ?
ख्वाहिशें जब जानती हैं ,पूरी हो नही सकती -----------

"तो ख्वाहिशें जागती क्यूँ  हैं ? "


-ANJALI MAAHIL
परदे= पलक , हलचलें= आंसू

10 comments:

  1. ये ख्वाहिशें जिन्दगी में ,
    बे-तहाशा दौडती क्यूँ हैं ?
    ख्वाहिशें जब जानती हैं ,पूरी हो नही सकती -----------
    बहुत ही अच्छी रचना.....

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  2. ख्वाहिशें होती हैं बस ख्वाहिशें
    इसी लिए तो पूरी नहीं होतीं
    जगी रहती हैं हमेशा इंसान के भीतर
    न खुद सोतीं हैं न उसे सोने देतीं....!!


    बहुत उम्दा रचना......!!!

    ***punam***
    'bas yun...hi..'
    'tumhare liye.....'

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  3. सुंदर प्रस्‍तुति।
    ख्‍व‍ाहिशें का होना ही जिंदगी है...

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना| धन्यवाद|

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  5. इन ख्वाहिशों की लौ तेज करते करते मैं ही अँधेरा बन गई हूँ ...

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  6. बस यही तो ख्वाहिशों की फ़ितरत होती है जा जाकर वापस आ जाती हैं……………सुन्दर प्रस्तुति।

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  7. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  8. jawaab to iska , us khuda ke pass bhi nahi
    nywy sunder panktiyan :)

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  9. या तो आपने पानी पिछली पोस्ट में दी गयी मेरी टिप्पणीयों को पड़ा नहीं या फिर शायद आप किसी के ब्लॉग पर जाना पसंद नहीं करती............उसके कहने के बावजूद.......शायद कहीं कलम पे गुमान हो गया जान पड़ता है |

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