मैं मुस्कुरा दिया ,
उस रात चांदनी में ,
भीगते देखा था तुम्हे ,
कसक उठी थी ,
उस रोज़ तन्हाई में बातें ,
करते सुना था तुम्हे ,
कसक उठी थी ,
अपनी ख़ामोशी में ,
तुम्हे खामोश कर लूँ !
गुलाब की पंखुड़ियों के बीच ,
उस रोज़ मुस्कुराते देखा जब तुम्हे ,
सोच कर बांध लूँ पलकों में तुम्हे ,
मैं मुस्कुरा दिया ,
ये तो कोई शरारत होगी !
कागज पर उलझे शब्दों पर उँगलियाँ फेर,
उस रोज़ सोचते हुए देखा था तुम्हे ,
हैरान कर दूँ छुकर ,ये सोच ,
मैं मुस्कुरा दिया ,
ये तो कोई शरारत होगी !
मुझे गुनगुनाते देख
मेरी शरारत को जानकर ,
उस रोज़ कहा था तुमने ,
" क्या हुआ? "
एक-एक लफ्ज कर दूँ बयां , ये सोच ,
मैं मुस्कुरा दिया ,
ये तो फिर कोई शरारत होगी !
उस बीती सी रात में ,
क्या नया था ?
तुम ही तो थी ,
मगर खास थी ,
शायद मुझसे कुछ ,
ज्यादा ही करीब थी !
BY: Anjali Maahil
sach me gahai to bahut hai is poem me bas samajhne wala chahiye.... Keep writting
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने.
ReplyDeleteसादर
खुबसुरती आपने अपने जज्बातों को शब्दों में पिरोया है। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteखूबसूरती से आकार लेते शब्द ,मनमोहक रचना बधाई
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति है
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