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May 15, 2011

शरारत...

मैं  मुस्कुरा  दिया ,
उस रात चांदनी में ,
भीगते देखा था तुम्हे ,
कसक उठी थी ,
कैद तुम्हे बाहों में  कर लूँ !

उस रोज़ तन्हाई में बातें  ,
करते सुना था तुम्हे ,
कसक उठी थी ,
अपनी ख़ामोशी में ,
तुम्हे खामोश कर लूँ !

गुलाब की पंखुड़ियों के बीच ,
उस रोज़ मुस्कुराते देखा जब तुम्हे ,
सोच कर बांध  लूँ पलकों  में तुम्हे ,
मैं मुस्कुरा दिया ,
ये तो  कोई शरारत होगी !

कागज पर उलझे शब्दों पर उँगलियाँ फेर,
उस रोज़ सोचते हुए देखा था तुम्हे ,
हैरान कर दूँ छुकर ,ये सोच ,
मैं मुस्कुरा दिया ,
ये तो  कोई शरारत होगी !

मुझे गुनगुनाते देख 
मेरी शरारत को जानकर ,
उस रोज़ कहा था तुमने ,
" क्या हुआ? "
एक-एक लफ्ज कर दूँ बयां , ये सोच ,
मैं मुस्कुरा दिया ,
ये तो फिर कोई शरारत होगी !

उस बीती सी रात में ,
क्या नया था ?
तुम ही तो थी ,
मगर खास थी ,
शायद मुझसे कुछ ,
ज्यादा ही करीब थी !


BY: Anjali Maahil

5 comments:

  1. sach me gahai to bahut hai is poem me bas samajhne wala chahiye.... Keep writting

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  2. बहुत बढ़िया लिखा है आपने.

    सादर

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  3. खुबसुरती आपने अपने जज्बातों को शब्दों में पिरोया है। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।

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  4. खूबसूरती से आकार लेते शब्द ,मनमोहक रचना बधाई

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति है

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