जाने कब जाने कैसे ?
हाथों की लकीरों में ,
दर्द दिल का उतर आया ,
जो किसी चेहरे पर ,
बीते वक़्त पढ़ा था !
जाने कब जाने कैसे ?
हसरत , बिखरी अधूरी ,
खवाहिशें समेटने की उभर आयी ,
जो किसी जुबान से ,
बीते वक़्त सुना थी !
जाने कब जाने कैसे ?
दरारे अध्-खुले दरवाजों से
आधी दीवारों पर चढ़ने लगी ,
जो किसी खंडर पर ,
बीते वक़्त देखी थी !
BY: ANJALI MAAHIL
जाने कब जाने कैसे ?
ReplyDeleteहसरत , बिखरी अधूरी ,
खवाहिशें समेटने की उभर आयी ,
जो किसी जुबान से ,
बीते वक़्त सुना था !
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
लाज़वाब लिखती हैं आप!
सादर
जाने कब जाने कैसे ?
ReplyDeleteहाथों की लकीरों में ,
दर्द दिल का उतर आया ,
जो किसी चेहरे पर ,
बीते वक़्त पढ़ा था ...
कमाल की पंक्तियाँ..बहुत सुन्दर कोमल अहसास... सुन्दर संवेदनशील और मर्मस्पर्शी रचना..
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
ReplyDeleteआपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
ReplyDeleteबुहुत बुहुत धन्यवाद आप सभी का .....
ReplyDeleteप्रभावी भाव ..........
ReplyDeletethanks a lot ..Nevidita ji
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