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May 24, 2011

जाने कब जाने कैसे ?

जाने कब जाने कैसे ?
हाथों की लकीरों में ,
दर्द दिल का उतर आया ,
जो किसी चेहरे पर ,
बीते वक़्त पढ़ा था !


जाने कब जाने कैसे ?
हसरत , बिखरी अधूरी ,
खवाहिशें समेटने की उभर आयी ,
जो किसी जुबान से ,
बीते वक़्त सुना थी  !


जाने कब जाने कैसे ?
दरारे अध्-खुले दरवाजों से 
आधी दीवारों पर चढ़ने लगी ,
जो किसी खंडर पर ,
बीते वक़्त देखी थी !



BY: ANJALI MAAHIL

7 comments:

  1. जाने कब जाने कैसे ?
    हसरत , बिखरी अधूरी ,
    खवाहिशें समेटने की उभर आयी ,
    जो किसी जुबान से ,
    बीते वक़्त सुना था !

    ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
    लाज़वाब लिखती हैं आप!

    सादर

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  2. जाने कब जाने कैसे ?
    हाथों की लकीरों में ,
    दर्द दिल का उतर आया ,
    जो किसी चेहरे पर ,
    बीते वक़्त पढ़ा था ...

    कमाल की पंक्तियाँ..बहुत सुन्दर कोमल अहसास... सुन्दर संवेदनशील और मर्मस्पर्शी रचना..

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  3. हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

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  4. आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !

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  5. बुहुत बुहुत धन्यवाद आप सभी का .....

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