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Jul 31, 2011

कमी

"जब  सदायें  पिछा करती  हैं ......तब अकेलेपन की बहुत याद आती है !!!"


"देख कुछ कमी है मुझमें "
बहुत असहज सा लगता है , 
कुछ पराया सा , छुटा हुआ !
तब अपनेपन की बहुत याद आती है !

बीते वक्त की तस्वीरों में ,
कैद हो गयी खुशियाँ सारी ,
मैं अतीत , और तुम वर्तमान ,
कहकर अंधेरों में कचोटती हैं ,
आईने में देखता हूँ ,
असलियत जब अपनी ,
तब याद आता है , 
"देख कुछ कमी है मुझमे ...."

खाली से हाथ , शून्य की ओर ,
देखती एकटक आखें ,
कुछ तलाशती हुई ,
बेरंग दीवारों के बीच
घिरा "मैं" खुद को पाता हूँ ,
कुछ निराश , कुछ हताश ,
तब सोचता हूँ ,
" देख कुछ कमी है मुझमे ....."

-Anjali Maahil

21 comments:

  1. मार्मिक अभिवयक्ति....

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  2. खाली से हाथ , शून्य की ओर ,
    देखती एकटक आखें ,
    कुछ तलाशती हुई ,
    बेरंग दीवारों के बीच
    घिरा "मैं" खुद को पाता हूँ ,
    कुछ निराश , कुछ हताश ,
    तब सोचता हूँ ,
    " देख कुछ कमी है मुझमे ....."
    bahut khoob likha hai

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  3. EVERYBODY RUN AFTER HIS IDENTIFICATION ...BUT AT LEAST THEY HAVE NO MORE WITH EMPTY HANDS. IT IS HUMAN MISTAKE TO FOCUS HIMSELF...YOUR EXPRESSION IS VERY NICE AND SUPERB

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  4. वाह अलग अन्दाज़ की अलग रचना।

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  5. आपकी हर कविता की तरह यह भी बहुत बेहतरीन कविता है।

    सादर

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  6. Anjali जी आप भी इस विषय पर ऍसा महसूस करती हैं जानकर बेहद खूशी हुई। और जो कविता लिखी बहुत कुछ दर्द बयां कर जाती है


    बहुत खूब लिखा है आपने। इस कविता को यहाँ बांटने का शुक्रिया !

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  7. कल 01/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. कल 02/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!
    माफ कीजयेगा पिछले कमेन्ट मे तारीख गलत हो गयी थी

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  9. सच ऐसा ही अहसास हो चुका है मुझे......अभी ज्यादा वक़्त भी नहीं हुआ.......जानता हूँ की वक़्त का मरहम हर घाव भर देता है.....पर वक़्त तो लगता है |

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  10. बहुत सुन्दर.. मार्मिक अभिवयक्ति....

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  11. बेहतरीन भावों से भरी सुदंर रचना। आभार।

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  12. apne aap ko pahachaane ki koshish kavita ke madhyam se bahut hi sundarta se kiya hai apne...badhai

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  13. बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति लिए... सुन्दर....

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  14. बेरंग दीवारों के बीच
    घिरा "मैं" खुद को पाता हूँ ,
    कुछ निराश , कुछ हताश ,
    तब सोचता हूँ ,
    " देख कुछ कमी है मुझमे ....."

    मान के अंतर्द्वंद्व को बखूबी लिखा है .

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  15. बिलकुल अलग अंदाज में ......

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  16. बिलकुल अलग अंदाज में ......

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  17. खूबसूरत रचना। सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  18. खाली से हाथ , शून्य की ओर ,
    देखती एकटक आखें ,
    कुछ तलाशती हुई ,
    बेरंग दीवारों के बीच
    घिरा "मैं" खुद को पाता हूँ ,
    कुछ निराश , कुछ हताश ,
    तब सोचता हूँ ,
    " देख कुछ कमी है मुझमे .....

    सुंदर ..बहुत गहरी अभिव्यक्ति....

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  19. बहुत खूब लिखा है आपने।

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  20. आप सभी कि शुभकामनाओं और प्रतिक्रियाओं के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!!

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