15 अगस्त 1947 ....देश की आजादी का दिन..... जिस दिन के लिए जाने कितने भारतवासियों ने अपना जीवन कुर्बान कर दिया ...! और उसके बाद भी क़ुरबानी का ये
सिलसिला थमा नही ...... आज भी सरहदों पर हमारे सैनिक अपने देश की सेवा में अपनी जान देने से पीछे नही हटते...!
आज उन्ही शहीदों को एक छोटी सी श्रधांजलि ...... , और उनके परिवारों को को एक छोटा
सा सलाम .......
" भारत हमको जान से प्यारा है..सबसे न्यारा गुलिस्ताँ हमारा है...सदियों से भारत भूमि दुनिया की शान है...भारत माँ की रक्षा में जीवन कुर्बान है ...! "मैं सरहद पर जो बैठा हूँ,
मजबूरी में ही तो बैठा हूँ ,
छोड़ के कैसे सब आ जाऊं ?
बता ....सब छोड़ के कैसे आ जाऊं ?
हाँ ,
याद मुझको भी तेरी आती है ,
और धीरे - धीरे आती है ,
जाने क्यूँ , रोने का भी वक़्त नही ?
मैं अब सरहद पर जो बैठा हूँ !
जाने क्यूँ , रोने का भी वक़्त नही ?
मैं अब सरहद पर जो बैठा हूँ !
चढ़ता है जब नभ पे सूरज ,
तेरी पायल लगती है ,
फिर एक गोली चलती है
और तू गायब हो जाती है ,
एक आह सी दिल में उठती है
मैं अब सरहद पर जो बैठा हूँ !
छोड़ के कैसे ..........आ जाऊं ?
रात की ठंडी - ठंडी लहरे ,
मुझको सिहरन देती हैं ,
रखकर हाथ में अपने सर पर ,
जब हँसी को तेरी सुनता हूँ ,
तब एक आंसू गिरता है ,
और मुझको गीला करता है ,
तब फिर एक गोली चलती है
मुझको सिहरन देती हैं ,
रखकर हाथ में अपने सर पर ,
जब हँसी को तेरी सुनता हूँ ,
तब एक आंसू गिरता है ,
और मुझको गीला करता है ,
तब फिर एक गोली चलती है
और तू गायब हो जाती है ,
एक आह सी दिल में उठती है
मैं अब सरहद पर जो बैठा हूँ !
मैं अब सरहद पर जो बैठा हूँ !
तेरी आखें तकती हैं ......
पर मुझ पर मेरी माँ का ऋण है
पर मुझ पर मेरी माँ का ऋण है
सब छोड़ के कैसे आ जाऊं ?
बता ......सब छोड़ के कैसे आ जाऊं ?
एक वादा करते जाता हूँ .
एक रोज़ मैं आकर ,
पूरा कर दूंगा !
फिर एक गोली चलती है ,
और सब गायब हो जाता है ,
मैं अब तक सरहद पर जो बैठा था ,
मज़बूरी में ही तो बैठा था ...!
"आज लौट के घर को आऊंगा .....!"
और सब गायब हो जाता है ,
मैं अब तक सरहद पर जो बैठा था ,
मज़बूरी में ही तो बैठा था ...!
"आज लौट के घर को आऊंगा .....!"
याद में उनकी ......एक दीप तो जला ही दो ......
65वे स्वंतन्त्रता दिवस की आप सभी को शुभकामनायें .......
-अंजलि माहिल
बहुत अच्छी प्रस्तुति ..देश की रक्षा करने वाले जवानो को सलाम
ReplyDeleteमार्मिक कविता...पढते-पढते पलके गीली हो गई हैं..भाव भी गहरे और शब्द चयन भी..देशभक्ति से ओत-प्रोत रचना साथ मे फोटो भी बडे प्रासंगिक चस्पा किए है आपने...
ReplyDeleteआभार
डॉ.अजीत
हम आज जो कुछ भी हैं इन वीरों की बदौलत ही हैं।
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।
सादर
ek aansu ka diya jala diya hai...
ReplyDeleteajali ji really aapki iss kavita ne to dil ko chu liya, bahot hi acchi feeling ho rahi he jankar ki logo ko humare prblms ka ahsas abhi bhi he, ek jawan kis tarah apna jivan, apni jawani apna fam sab apne desh ke naam kardeta he, lekin dukh hota he jankar bahot jab hume roj corruption ke bareme sunane ko milta he...............,
ReplyDeleteउफ़ बेहद मार्मिक मगर सटीक चित्रण किया है।
ReplyDeleteस्वतंत्र दिवस पर ढेरों शुभकामनाएँ तथा वीर शहीदों को सलाम!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना,बहुत ही उम्दा प्रस्तुती
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की बहुत शुभकामनायें.
बेहद मार्मिक और सटीक रचना ....
ReplyDeleteमार्मिक और सटीक रचना, अच्छी लगी , बधाई ....
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteउम्दा।
शानदार।
शहीदों की शहादत को सलाम।