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Sep 9, 2011

मेरा शहर, अब लगता नही ...

" आप , मैं और हम सभी ...जानते हैं ....कि परिवर्तन तो होते हैं , और होते रहेंगे ...नियम है नियति  का ..! मगर कुछ बदलाव फिर हमे इतना क्यूँ अखरते हैं...? असहज  की स्तिथि में  क्यूँ  ला देते हैं  हमे....क्यूँ  ...? "


....... जब ,
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ ,
जो अपना तो था ..पर अपना-सा ना लगा ,
अजीब बड़ा माहौल था ,परायों सा ,
कोई खिड़की से झांके , कोई दरवाजे के पास से ,
राम - रहीम का कोई भी ,
लफ्ज कानो में गूंजता ना था ... जब , 
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ !



सभी  को अजीब सी  कमाने  की होड़ थी ,
उस बिखरी  सी शाखों और उधड़ी हुई छाल के ,
बूढ़े से वृक्ष को देखकर ,
याद आ रही थी छन-छन कर आती धुप की ,
और बिखरी हुई गहरी शीतल छांव की .....,
बड़ी बड़ी इमारतों के बीच कोई कोना ,
देर तक मैं खोजता रहा ...... जब ,
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ !




संबोधनो की नगरी में ... वो बचपन का नाम मैं खोजता रहा ,
जो था संग मेरे... मेरे लिए  एक आवरण की भांति  ,
मगर अब वो भी नही अपना लगता .... कहीं नही दिखता  !
जब ....
बड़े दिनों के बाद मेरा अपने ही शहर को जाना हुआ !!


 -Anjali Maahil

9 comments:

  1. बहुत सही लिखा है आपने।

    सादर

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  2. वक्त सब कुछ बदल देता है…………सुन्दर रचना।

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  3. कोई भी चीज़ सदा के लिए नहीं रहती.........शायद यही शाश्वत नियम है|

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  4. समय के साथ सब कुछ बदलता रहता है......
    यही शाश्वत नियम है|
    बदलाव ही जिन्दगी है..बहुत सुन्दर

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  5. दो मिनट के शहर में ....

    किसको फुर्सत है की वो

    कुछ सोचे किसी के लिए

    और अगर

    कोई सोचता भी है तो

    उसे ये जहान

    पागल कहता है ....

    इस भागते दो मिनट

    के शहर में..................anu

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  6. बहुत सुन्दर मन से निकली भावनाएं ...खूबसूरती से लिखी हैं ..अच्छी प्रस्तुति

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  7. सुंदर प्रस्‍तुति............

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  8. jab jo shehar chuut jaate hain ..wo laut kar aaane pe ...badal jaate hain..jaisa chhoda tha waisa nahinn rahta ,kabhi .sundar rachnaa!!

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