जाने कैसे , मेरे सभी दोष दिख जाते हैं उनको .
मेरी एक मुलाकात में ?
जाने कैसे , छुपा लेते हैं अपनी दक्ष प्रतिभा ....
वो अपनी एक मुस्कान में ?
वही लोग थे वो,
जिन्होंने ....
मेरे तन की लम्बाई से ,
आँखों की गहराई ,
और ,मेरी आँखों की गहराई से ,
मेरे मन की ऊंचाई मापी |
वही लोग थे वो,
जिन्होंने ..
मेरे लबों की ख़ामोशी से ,
मुझे बेवकूफ समझा ,
और ,मेरी इसी बेवकूफी से ,
मेरे ज्ञान की सीमा मापी |
वही लोग थे वो,
जिन्होंने ..
मेरे गिरते आंसुओं से ,
मुझे कमजोर समझा ,
और मेरी आँखों की कमजोरी से ,
मेरे होंसलो की दूरी मापी |
बहुत खुश हैं वो ये सोच कर -
"अंदाजों के इन्ही आधारों पर टिकी मेरी हस्ती सारी ..."
जाने कैसे .....मेरे सभी दोष दिख जाते हैं उनको ,
मेरी एक मुलाकात में ?
जिन्होंने ....
मेरे तन की लम्बाई से ,
आँखों की गहराई ,
और ,मेरी आँखों की गहराई से ,
मेरे मन की ऊंचाई मापी |
वही लोग थे वो,
जिन्होंने ..
मेरे लबों की ख़ामोशी से ,
मुझे बेवकूफ समझा ,
और ,मेरी इसी बेवकूफी से ,
मेरे ज्ञान की सीमा मापी |
वही लोग थे वो,
जिन्होंने ..
मेरे गिरते आंसुओं से ,
मुझे कमजोर समझा ,
और मेरी आँखों की कमजोरी से ,
मेरे होंसलो की दूरी मापी |
बहुत खुश हैं वो ये सोच कर -
"अंदाजों के इन्ही आधारों पर टिकी मेरी हस्ती सारी ..."
जाने कैसे .....मेरे सभी दोष दिख जाते हैं उनको ,
मेरी एक मुलाकात में ?
-ANJALI MAAHIL
बेहद मर्मस्पर्शी कविता है।
ReplyDeleteसादर
भावमयी मार्मिक अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteकल 16/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आज भी विवाह के लिए यूँ ही लड़कियां देखी और परखी जाती हैं .. और बना ली जाती है एक काल्पनिक छवि ....सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत भावमयी प्रस्तुति | उम्दा रचना |
ReplyDeleteमेरी नई रचना देखें-
**मेरी कविता:हिंदी हिन्दुस्तान है**
वही लोग थे वो,
ReplyDeleteजिन्होंने ....
मेरे तन की लम्बाई से ,
आँखों की गहराई ,
और ,मेरी आँखों की गहराई से ,
मेरे मन की ऊंचाई मापी |वाह! बहुत ही संदर.....
behtreen rachna....
ReplyDeleteजिन्हें दोष दिखते हैं वो कहीं न कहीं दुसरो में स्वार्थ देखते है .......और जो अपने को दूसरो से श्रेष्ठ समझते हैं उन्हें दूसरों में सदा दोष ही दिखते है.......बहुत सुन्दर लगी पोस्ट|
ReplyDeletebahut hi sunder bhav...........
ReplyDeleteसभी कुछ अंदाज़े पे ही तो टिका हुआ है ..सुन्दर रचना !
ReplyDeleteपूर्वाग्रह से ग्रसित लोग ! ये एक विडम्बना है कि इंसान जिसमें समझने कि ताकत है वो खुद को और दूसरों को ठीक से समझ ही नहीं पाता कभी ... सुंदर रचना । शुभकामनाएँ ..
ReplyDeleteवही लोग थे वो,
ReplyDeleteजिन्होंने ..
मेरे लबों की ख़ामोशी से ,
मुझे बेवकूफ समझा ,
और ,मेरी इसी बेवकूफी से ,
मेरे ज्ञान की सीमा मापी |...
बहुत खुश हैं वो ये सोच कर -
"अंदाजों के इन्ही आधारों पर टिकी मेरी हस्ती सारी ..."
जाने कैसे .....मेरे सभी दोष दिख जाते हैं उनको ,
मेरी एक मुलाकात में ?
दर्द को बहुत अच्छी तरह व्यक्त किया आपने ...अभिनन्दन
हाथ के पारखी और अच्छे अनुभवी है वे !
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...सुन्दर शब्दों का संगम ।
ReplyDeleteजाने कैसे , मेरे सभी दोष दिख जाते हैं उनको .
ReplyDeleteमेरी एक मुलाकात में ?
जाने कैसे??? सुन्दर शब्द और कोमल भावनाएं....
वाह बहुत खूब ,बहुत सुन्दर .....
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti..
ReplyDeleteसुन्दर शब्द और कोमल भावनाएं....सुन्दर रचना !
ReplyDeleteसुंदर।
ReplyDeleteभावभरी रचना।