कभी गमो की दलदल में हम भी डूबे थे ,
अब निशां पड़ेंगे , सुखों की सूखी जमीं पर ,
तुमसे जुदा होकर !!
कभी मुद्तों -मुद्तों भीगे आँखों की बारिश में हम भी थे
अब मुस्कुराहटों का दौर है ,
तुमसे जुदा होकर !!
कभी हम राह से भटके , तो कभी चलना भी भूले थे,
अब संग चलने लगी हैं मंजिले ,
तुमसे जुदा होकर !!
अब विदा तहां - भिक्षुक रात हुई ,
तुमसे जुदा होकर !!
कभी शामिल हुए , तो कभी खुद को खो दिया तुझमे ,
अब लेने लगी है " पहचान " एक शक्ल ,
तुमसे जुदा होकर !!
कभी जिंदगी जीते थे , हर तेरी याद में " साहिब! " ,
अब किस्तों में सुकून से कटती हैं ये जिंदगी ,
तुमसे जुदा होकर !!
कभी जंगले पर तेरे, निगाह दिन-ओं- रात रखते थे ,
अब टांग दिया हैं पर्दा,
तुमसे जुदा होकर !!
कल उस युग में जीते थे , कि हासिल कुछ नही आया ,
अब सब सीख लिया हमने,
तुमसे जुदा होकर !!
-ANJALI MAAHIL
जंगले = खिडकी
कभी जिंदगी जीते थे , हर तेरी याद में " साहिब! " ,
ReplyDeleteअब किस्तों में सुकून से कटती हैं ये जिंदगी ,
तुमसे जुदा होकर !no words.............
बहुत कुछ सीखना पड़ता है ... जुड़ा हो कर ही सही ..हकीकत यही है
ReplyDeleteBahut hi bhavpurna rachna Anjali Ji.. Aabhar...
ReplyDeleteगजब का लिखा है आपने।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर भावो को उकेरा है।
ReplyDeleteकल उस युग में जीते थे , कि हासिल कुछ नही आया ,
ReplyDeleteअब सब सीख लिया हमने,
तुमसे जुदा होकर !! bhaut hi kuch sikhna hai....
कभी जंगले पर तेरे, निगाह दिन-ओं- रात रखते थे ,
ReplyDeleteअब टांग दिया हैं पर्दा,
तुमसे जुदा होकर !!बढ़िया....जुदा होकर जीना जितना जल्द सीख लिया जाये उतना बेहतर
बहुत सुन्दर भावो को उजागर किया है..बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसुभानाल्लाह........बहुत खूबसूरत........जिंदगी में गिर कर संभलना ही पड़ता है नहीं तो जिंदगी हर कदम नयी ठोकर मारती है|
ReplyDeleteजुदा हो कैसे संभला जाता है ये सीख दे गई आपकी कविता..आपके ज़ज्बे को सलाम अंजलि जी...!!!
ReplyDeleteडॉ.अजीत
..... तुमसे जुदा होकर
ReplyDeleteगहरे जज्बात।
बेहतरीन शब्द संयोजन।
शुभकामनाएं.............