"मेरा है....!"
ये सोचकर आशियाने के ,
नाजुक शीशे तोड़ गया कोई ,
नही है मुझे , कोई मलाल
ये सोचकर , कि -
" खंडर ही सही , आज भी ,
मेरा आशियाना तो है ..!"
बेशक ,
अब वो गर्म अहसास ,
इसमें नही होता,
बेरोक - टोक टकराती हैं ,
सर्द हवाएं अब मुझसे ,
सुकून है तो बस उस ,
दीवार के एक सहारे का ,
जो आज भी मजबूत है ,
ये सोचकर , कि - .................
मेरा आशियाना तो है ..!"
बेशक ,
ये बंद जो है खिडकी ,
जहाँ से धूप आती थी ,
हवा के साथ साथ
बहने वाली बारिश ,
अब मुझको बताती है,
इसका शीशा टूटा सा है ,
सुकून है तो उस ,
चटके-अधूरे से शीशे का ,
जो टूटकर कर भी बिखरा नही ,
शायद वो भी मेरी ही तरहा है ,
नही है मुझे , कोई मलाल ,
ये सोचकर , कि - .................
मेरा आशियाना तो है ..!"
बेशक ,
अब इसके पते की "पहचान"
अधूरी लगती हो तुम्हे ,
भले , अब भूले-भटके से लोगों की ,
जुबान पर इसका नाम आता हो ,
जहाँ इंटों की तरहा ,
बिखरे हों पल मेरे,
सुकून है तो उस ,
अहसास का , जो छुटकर भी बिखरा नही ,
सिमट - कर , छुपा बैठा है कहीं ,
शायद वो भी मेरी ही तरहा है ,
इसलिए नही है मुझे , कोई भी मलाल ,
ये सोचकर , कि - .................
" खंडर ही सही , आज भी ,
मेरा आशियाना तो है ..!"
ये सोचकर आशियाने के ,
नाजुक शीशे तोड़ गया कोई ,
नही है मुझे , कोई मलाल
ये सोचकर , कि -
" खंडर ही सही , आज भी ,
मेरा आशियाना तो है ..!"
बेशक ,
अब वो गर्म अहसास ,
इसमें नही होता,
बेरोक - टोक टकराती हैं ,
सर्द हवाएं अब मुझसे ,
सुकून है तो बस उस ,
दीवार के एक सहारे का ,
जो आज भी मजबूत है ,
शायद वो भी मेरी ही तरहा है ,
नही है मुझे , कोई मलाल ,ये सोचकर , कि - .................
मेरा आशियाना तो है ..!"
बेशक ,
ये बंद जो है खिडकी ,
जहाँ से धूप आती थी ,
हवा के साथ साथ
बहने वाली बारिश ,
अब मुझको बताती है,
इसका शीशा टूटा सा है ,
सुकून है तो उस ,
चटके-अधूरे से शीशे का ,
जो टूटकर कर भी बिखरा नही ,
शायद वो भी मेरी ही तरहा है ,
नही है मुझे , कोई मलाल ,
ये सोचकर , कि - .................
मेरा आशियाना तो है ..!"
बेशक ,
अब इसके पते की "पहचान"
अधूरी लगती हो तुम्हे ,
भले , अब भूले-भटके से लोगों की ,
जुबान पर इसका नाम आता हो ,
जहाँ इंटों की तरहा ,
बिखरे हों पल मेरे,
सुकून है तो उस ,
अहसास का , जो छुटकर भी बिखरा नही ,
सिमट - कर , छुपा बैठा है कहीं ,
शायद वो भी मेरी ही तरहा है ,
इसलिए नही है मुझे , कोई भी मलाल ,
ये सोचकर , कि - .................
" खंडर ही सही , आज भी ,
मेरा आशियाना तो है ..!"
-ANJALI MAAHIL
"मेरा है....!"
ReplyDeleteये सोचकर आशियाने के ,
नाजुक शीशे तोड़ गया कोई ,
नही है मुझे , कोई मलाल
ये सोचकर , कि -
" खंडर ही सही , आज भी ,
मेरा आशियाना तो है ..!"
bhut sundar rachna
vikasgarg23.blogspot.com
सिमट - कर , छुपा बैठा है कहीं ,
ReplyDeleteशायद वो भी मेरी ही तरहा है ,
इसलिए नही है मुझे , कोई भी मलाल ,
ये सोचकर , कि - .................
" खंडर ही सही , आज भी ,
मेरा आशियाना तो है ..!"
बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता।
सादर
जो आपका आशियाना है वो कभी खंडहर हो ही नहीं सकता।
ReplyDeleteभावमय करती शब्द रचना ।
ReplyDeleteसुभानाल्लाह........बहुत खूबसूरत..........बहुत पसंद आई ये पोस्ट.........और कहने को लफ्ज़ नहीं हैं मेरे पास|
ReplyDeleteखंडर ही सही , आज भी ,
ReplyDeleteमेरा आशियाना तो है ..!"बहुत ही सारगर्भित रचना....
अपना आशियाना फिर वो चाहें जैसा भी हो...अपना ही होता है...हर हाल में
ReplyDeletebahut sunder shabdo ki neev per bana hai aapka aashiana,sunder bhav
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteगहरे भाव के साथ सुंदर प्रस्तुतिकरण।
बेशक आशयाना तो है .. संवेदनशील रचना ..
ReplyDeleteभला भला सा है ये आशियाना ...अच्छा लगा सादगी से भरी आपकी दुनिया में आना
ReplyDeletebehtreen rachna...
ReplyDeleteसुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 01-09 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज ... दो पग तेरे , दो पग मेरे
सुन्दर और भावपूर्ण कविता..... हार्दिक बधाई..गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं
ReplyDelete