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Sep 4, 2011

कलम : मैं

" हम भी बनेंगे कलम "

उतारेंगे अहसासों को , जज्बातों को
हर मोड़ पर , ठहरे हालातों को , 
हम भी जब बनेंगे कलम !!

रखेंगे अपनी सोच सभी ,
पक्ष -विपक्ष और विचारों को ,
फिर बदले नए हालातों को ,
हम भी जब बनेंगे कलम !!

लिखेंगे "लहरें" - समंदर की ,
संग कश्ती और किनारों को ,
टकराकर टूटी चट्टानों को ,
हम भी जब बनेंगे कलम !!

लिखेंगे बसंत की चंचल बहारों को ,
सावन - घटा और शीत दबी आवाजों को ,
मरू के तपते इंसानों को ,
हम भी जब बनेंगे कलम !!

लिखेंगे अपने शब्दकोश नए ,
संग रचनाओ और भाषाओँ को,
देंगे स्वरूप  नया " परिभाषाओं " को
हम भी जब बनेंगे कलम !!



लहरें =विचार , समंदर =आत्मा , कश्ती =राहें , मार्ग , किनारे =मंजिल , चट्टानों =रूढ़ियाँ 
बसंत =ख़ुशी का समय, 
सावन-घटा =दुःख का समय ,
शीत =वो वक्त जब जीवन में शून्य का अधिपत्य हो जाएँ , मरू =मुश्किलें 

-ANJALI MAAHIL 

15 comments:

  1. मरू के तपते इंसानों को ,
    हम भी जब बनेंगे कलम !!

    धीरे धीरे महसूस कर पा रही हूँ आपकी लेखनी की गहराई को ...
    बहुत पकड़ है आपके लेखन में ...

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  2. उतारेंगे अहसासों को , जज्बातों को
    हर मोड़ पर , ठहरे हालातों को ,
    हम भी जब बनेंगे कलम !! waah! bhaut hi behtreen abhivaykti kalam ki....

    ReplyDelete
  3. लिखेंगे अपने शब्दकोश नए ,
    संग रचनाओ और भाषाओँ को,

    बहुत बढ़िया।

    सादर

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  4. खूबसूरत बिम्ब ले कर बहुत कुछ कह दिया ..अच्छी अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  5. सुंदर अभिव्यक्ति

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  6. Behtarin bimb..sunder prastuti..badhayee ..mere blog per bhi aapka swagat hai

    ReplyDelete
  7. बढ़िया बिम्ब प्रयोग... सुन्दर अभिव्यक्ति...
    सादर...

    ReplyDelete
  8. लिखेंगे अपने शब्दकोश नए ,
    संग रचनाओ और भाषाओँ को,
    देंगे स्वरूप नया " परिभाषाओं " को
    हम भी जब बनेंगे कलम !!
    सुन्दर बिम्बों की सहायता से सजी खूबसूरत रचना

    ReplyDelete
  9. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

    ReplyDelete
  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति |
    बधाई |
    आशा

    ReplyDelete
  11. waah...
    maine bhee koshish khee thee aisee hi ek
    kalam ko apna bana kuch likh dene ki ek...
    bahut sundar rachna...

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  12. ''फिर बदले नए हालातों को
    हम भी जब बनेंगे कलम.....''


    बेहतरीन भाव।
    सुंदर प्रस्‍तुति.......

    शुभकामनाएं आपको..........

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  13. अंजलि माहिल(ममता)जी
    सस्नेहाभिवादन !

    बहुत सुंदर कविता लिखी है -
    लिखेंगे "लहरें" - समंदर की ,
    संग कश्ती और किनारों को ,
    टकराकर टूटी चट्टानों को ,
    हम भी जब बनेंगे कलम !!

    लिखेंगे बसंत की चंचल बहारों को ,
    सावन - घटा और शीत दबी आवाजों को ,
    मरू के तपते इंसानों को ,
    हम भी जब बनेंगे कलम !


    आपने बिंब स्पष्ट कर दिए … आभार !
    संयोग से मैं मरुवासी हूं :)


    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  14. सुन्दर प्रतीकों के साथ अनुपम पोस्ट |

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|

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